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उनका पीछा भी किया गया था; किन्तु वे शहर के भीतर तक पहुँच गये और किसी की पकड़में न आये।
आगे उनकी इच्छा ट्राम में बैठकर भाग जाने की थी; परन्तु टिकट के लायक एक भी सिक्का उनके पास न होने से वे ट्राम में न बैठ सके और पकड़ लिये गये। एक सिक्का न होने से लगातार अट्ठारह वर्ष तक उन्हें कैद की सजा भोगनी पड़ी थी ! इससे धन का महत्त्व ध्यान में प्रा सकता है।
जर्मन - सम्राट जोसेफ द्वितीय ने एक दिन किसी बालक को सड़क पर भीख माँगते देखा। पूछताछ से पता चला कि उसके पिता चल बसे हैं। घर में छोटा भाई और माँ है, पर दोनों बीमार हैं। घर में खाने को दाना भी नहीं है। वह भूख सह सकता है, माँ और भाई की बीमारी नहीं। दोनों का इलाज कराने के लिए धन की ज़रूरत है। इस ज़रूरत की पूर्ति के लिए वह जीवन में पहली बार भीख माँगने को सड़क पर खड़ा हुआ है।
जोसेफ ने कुछ रुपये देकर बालक को एक डाक्टर के पास भेज दिया और पता नोट कर स्वयं उस बालक के घर पहुँचा। बातचीत से बीमारी का सही कारण मालूम हो गया। फिर वह कागज के एक टुकड़े पर नुस्खा लिख कर चला गया। घर वाले उसे डाक्टर समझे थे; इसलिए उसने भी दवा की तरह कागज पर कुछ लिख दिया था।
थोड़ी देर बाद बालक डाक्टर को साथ लेकर आया। माँ ने पहले आये हुए डाक्टर का नुस्खा उसे दिखाया । नुस्खे में लिखा था: " बालक को खजाने से एक हजार सिक्के दे दिये जायँ।" नीचे सम्राट के हस्ताक्षर थे।
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