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क्या तवंगर क्या गुनी क्या पीर और क्या बालक । सब के दिल में फिक्र है दिनरात पाटे दाल का ॥
इस चिन्ता का मुख्य कारण है-निर्धनता, जिससे बुद्धि भी दूर चली जाती है। जहाँ चिन्ता का निवास हो जाता है, वहाँ बुद्धि का निवास कैसे हो सकता है ?
नश्यति विपुलमतेरपि बुद्धिः पुरुषस्य मन्द विभवस्य ।
घृतलवणतैलतण्डुल- वस्त्रेन्धनचिन्तया सततम् ॥ [विशाल बुद्धि वाला पुरुष भी यदि निर्धन है तो लगातार घी, नमक, तेल, चाँवल, वस्त्र, ईधन आदि की चिन्ता से उसकी बुद्धि नेष्ट हो जाती है]
बुद्धि ही क्यों ? अन्य गुणों पर भी चिन्ता की आँच पहुँच जाती है :
दारिद्रयदोषो गुणराशिनाशी ।। [गरीबी ऐसा दोष है, जो गुणों के समूह को नष्ट कर देता है]
निर्धनता का दंश जब तक मनुष्यों को परेशान नहीं करता, तभी तक वे ज्ञान और विद्या की बड़ी-बड़ी चर्चाएँ करते हैं : तावद्विद्यानवद्या
गुणगणमहिमा रूपसम्पत्ति शौर्यम् स्वस्थाने सर्वशोभा
परगुणकथने वाक्पटुस्तावदेव । यावत्पाका कुलाभिः
स्वगृहयुवतिभिः प्रेषितापत्यनक्वात् हे बाबा! नास्ति तैलम्
न च लवणमपीत्यादि वाचां प्रचारः ॥
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