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बुखार जिस प्रकार शरीर को कमजोर बना देता है, उसी प्रकार चिन्ता भी शरीर को दुर्बल बना देती है। चिन्ता और दुर्बलता को साथ देखकर एक कविने उसके साथ इस प्रकार वार्तालाप किया :
चिन्ते ! दुर्बलतास्ति किं तव सखी यत्सार्धमेवेक्ष्यते ? नैवं किन्तु ममास्ति विश्वविजयी दुःखाभिधो नन्दनः । तस्यैषा रमरणीति वल्लभतरा जाता मदीया स्नुषा भूभक्तिपरायणान्वहमतो नो याति दूरं क्वचित् ।।
-धनमुनिः [हे चिन्ते ! क्या कमजोरी तेरी सहेली है, जो सदा तेरे साथ ही देखी जाती है ? (चिन्ता बोली) ऐसा नहीं है, किन्तु सारे विश्व पर विजय पाने वाला दुःख नामक मेरा जो पूत्र है, उसकी प्यारी पत्नि होने से यह (कमजोरी) मेरी बहू है। यह सासकी भक्त है; इसलिए प्रतिदिन पास ही रहती है-- दूर नहीं जाती ! ]
आशय यह है. कि चिन्ता से दुःख होता है और दुःख से कमजोरी पाती है। विवाह के बाद चिन्ता की सम्भावनाएँ तीव्र हो जाती हैं। इसलिए कहा है,
फूले फूले फिरत हैं, प्राज हमारो ब्याव ॥ _ 'तुलसी' गाय-बजाय के देत काठ में पाँव ॥
विवाह के पहले जो स्वतन्त्रता होती है, वह बाद में नहीं रहती, फिर तो :
भूल गये राग रंग, भूल गये छकड़ी। तीन चीज याद रही, नन तेल लकड़ी। यह हालत सबकी होती है :
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