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सास सुबह से शाम तक बैठी रही। शाम को भी भोजन का समय हो गया, फिर भी बहू मनाने नहीं आई। मुहल्ले वाले भी उसके बाहर बैठने का कारण पूछ - पूछ कर उसे लज्जित करने लगे। आखिर भूख और लज्जा के कारण सास को बाहर बैठे रहना असह्य हो गया। वह सोच रही थी कि एक बार किसी तरह मैं घर के भीतर पहँच जाऊँ तो काफी है। फिर भोजन तो मैं स्वयं अपनी थाली में रखकर खा लगी।
उसी समय चरने के लिए गई भैंस घर में लौट कर आई । बुढिया ने उसकी पूछ पकड़ ली और चिल्लाई "रहने दे रहने दे भैस ! तू मुझे जबर्दस्ती अन्दर क्यों ले जा रही है ?" ऐसा कहते कहते वह भैंस के साथ घिसटती हुई घर में प्रविष्ट हुई । घमण्ड ने ही उसके गौरव को मिट्टी में मिला दिया।
किसी अंग्रेज को आपने धोती - कुरते में नहीं देखा होगा; परन्तु उनकी पोशाक यहाँ खूब चल रही ! ईसा को क्रॉस पर लटकाया गया था। उसकी स्मृति में वे टाई बाँधते हैं; परन्तु आपके कौन - से तीर्थंकर या अवतार को फाँसी लगी ? बिना सोचे नकल करने से गौरव नष्ट होता है। गौरवशाली ही सच्चे मित्र पा सकता है, दीन - हीन नहीं।
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