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१४३ पश्चिम जर्मनी से एक विद्वान् यहाँ आये थे - डॉ०रोझ । भगवती सूत्र का अनुवाद कर रहे थे । कुछ शंकाओं का समाधान कराने के लिए आये थे । पन्द्रह दिन तक मेरे सान्निध्य में रहे । वे संस्कृत में ही बोलते थे। बड़े प्रामाणिक विद्वान थे । बहुत सन्तुष्ट हो कर गये; परन्तु जाते जाते मेरे मुह पर एक तमाचा मार गये । कह गये कि आगम की भाषाके जानकार यदि इसी प्रकार घटते रहे तो एक दिन ऐसा पायगा, जब भारत वासियों को अर्धमागधी सीखने के लिए पश्चिम जर्मनी प्राना पड़ेगा !
___मैं निरुत्तर हो गया । क्या कहता ? जो स्थिति आज जैन समाजकी है, उससे इन्कार कैसे करता ?
कुछ वर्ष पहले रेवती के दान के प्रसंग को लेकर किसी विद्वान् ने प्रभु महावीर पर माँसाहारी होने का आरोप लगाया था; परन्तु उससे जैनसमाज में कोई विशेष हलचल नहीं हुई । वह प्रसंग भगवती सूत्र में वर्णित है ।
"कपोत" शब्द के दो अर्थ होते हैं-कबूतर और कदू । वहां दूसरे अर्थ में ही उसका उपयोग हुआ है; परन्तु उस विद्वान् ने भ्रमसे पहला अर्थ ही समझ लिया। प्रभु का गौरव हमारा गौरव है । यदि कोई मूर्खतावश कीचड़ उछाले तो उसे पागल या बीमार समझकर हम उपेक्षा भी कर सकते हैं; परन्तु यदि किसी विद्वान् को भ्रम हो जाय तो उसके भ्रमको हर हालत में दूर करना हमारा कर्तव्य है, अन्यथा वह हजारों व्यक्तियों को भ्रान्ति का शिकार बना देगा। यदि जेनेतर विद्वानों के ऐसे भ्रमको मिटाने के कर्तव्य का हम पालन नहीं करें तो अपने गौरव को बचा नहीं सकते।
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