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गौरव पाने के लिए व्यक्ति को गौरवशाली (महान्) पुरुष की संगति में रहना पड़ता है-रहना चाहिये भी । जलबिन्दुओंको बादल से नीचे आते देख कर भरने को दौड़ते देख कर और नदियों को बहते देख कर जब इन से गन्तव्य पूछा गया तो सबने एक ही उत्तर दिया समुद्र । समुद्र जलनिधि है-महान् है; इसलिए ये सब उसकी संगति चाहते हैं ।
हाथी गौरवशाली है; परन्तु उसमें घमंड नहीं है । मक्खी हाथीकी पीठ पर बैठ कर यह सोचती है कि मैं इससे बड़ी हूँ तो यह उसका घमण्ड है ।
यह हो सकता है कि भ्रम से कभी गौरवशाली को घमण्डी मान लिया जाय और घमण्डी को गौरवशाली | इस भ्रम से बचने के लिए दोनों का सूक्ष्म अन्तर अच्छी तरह समझ लेना जरूरी है ।
गौरवशाली समझता है कि "मैं किसी से कम नहीं हूँ", किन्तु घमण्डी समझता है "मुझसे बढ़कर कोई नहीं हैमैं ही सब से बड़ा हूँ ।"
गौरवशाली किसी को हानि पहुँचाये बिना अपनी उन्नति करता है और घमण्डी दूसरों की हानि करके भी अपना नाम आगे लाना चाहता है । अपने में योग्यता न होने पर मी यश लूटना चाहता है । यही दोनों में मुख्य अन्तर है । जो व्यक्ति अपने कर्त्तव्य के प्रति उपेक्षा रखते हैं, वे अपने गौरव की रक्षा नहीं कर सकते । सारे जैन आगम अर्धमागधी भाषा में लिखे गये हैं; परन्तु अपनी इस भाषा के प्रचारके लिए आपने क्या किया हैं ? कितने जैन श्रावक या साधु ऐसे हैं, जो अर्धमागधी भाषा में बातचीत कर सकते हैं ?
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