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९. गौरव
गुरुताका भाव गौरव है, जो एक अच्छा गुण है । उर्दू का एक शेर है :
राहे खुद्दारी में मर कर भी भटक सकते नहीं । टूट तो सकते हैं हम, लेकिन लचक सकते नहीं ॥
गौरव को ही उर्दू में खुद्दारी कहते हैं। इसमें व्यक्ति को अपने उचित सम्मान को सुरक्षित रखने का ध्यान रहता है। यह ध्यान ही है, जो उसे कुमार्ग पर जाने से रोकता है ।
इसी गौरव के लिए लोग दान और त्याग करते हैं; क्योंकि :
गौरवं प्राप्यते दानान्न तु वित्तस्य सञ्चयात् ।
स्थितिरुच्चैः पयोदानाम् पयोधिनामधः स्थिति: ॥ [दान से ही गौरव प्राप्त होता है, धन के संग्रह से नहीं। बादल (पानी बरसाते हैं, इसो कारण) ऊँचे स्थान (आकाश) में हैं और समुद्रोंकी (पानी लेने और संग्रह करने के कारण) स्थिति नीचे है]
यहाँ गौरव का अर्थ यश है । यश भी दो प्रकार का होता है - सुयश और कूयश । राम को सुयश प्राप्त हा और रावण को कुयश । सुयश को ही गौरव कह सकते हैं, कुयश को नहीं ।
धन पाने के लिए धनवान् की, बुद्धि पाने के लिए बुद्धिमान की, बल पाने के लिए पहलवान की और विद्या पाने के लिए जैसे विद्वान की संगति की जाती है, वैसे ही
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