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१२८ तारों के झुण्डसे (ढेर सारे तारे मिल जाय तो भी उनसे) अंधेरा नष्ट नहीं हो सकता]
गुणवान् पुत्र को ही सुपुत्र कहते हैं, जिससे माँ-बाप को सुख मिलता है :
एकेनापि सुपुत्रेण सिंही स्वपिति निर्भयम् ।
सहैव दशभिः पुत्र-और वहति गर्दभी ॥ [एक सुपुत्र को पाकर सिंहनी निर्भयतापूर्वक सोती है; किन्तु दस पुत्रों के साथ गधी भार ढोती है]
एक बार सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टिन को सापेक्षवाद के सिद्धान्त पर भाषण देना था। समय निर्धारित हुआ। पोस्टर छपे । घोषणाएँ की गई; परन्तु आइंस्टिन नहीं गये । श्रोता निराश होकर लौट गये । ऐसा लगातार चार दिन तक हुआ। पाँचवें दिन ये भाषण देने पहुंचे। केवल दस श्रोता थे। आइंस्टिन ने उनके बीच लगातार तीन घंटे तक भाषण करके अपना सापेक्षवाद समझाया।
जब आयोजकों ने उनसे पूछा कि आप पहले चार दिन तक क्यों नहीं आये तो उन्हों ने उत्तर दिया : "मैं श्रोताओं को फिल्टर कर रहा था !"
भीड़ के बीच भाषण करने की अपेक्षा तीव्र जिज्ञासुओं के बीच भाषण करना अधिक लाभदायक होता है। उसमें वक्ता को भी आनन्द प्राता है और श्रोताको भी। श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश अकेले अर्जुन को दिया था। उसे युद्ध के लिए तैयार करना था-उसका मोह मिटाना था--उसकी किंकर्तव्य विमूढता नष्ट करनी थी, सो उसमें श्रीकृष्ण पूरी तरह सफल रहे । अर्जुनने उपदेश को आत्मसात् कर लिया ।
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