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से उनका महत्त्व समझाने का प्रयास करता हूँ । आप सुन
लेते हैं और भाव न जमने पर ग्रहण नहीं करते तो भी बुरा नहीं मानता नाराज़ नहीं होता; क्योंकि मेरा तो यह व्यवसाय ही है । व्यवसायी यदि ग्राहकों पर नाराज़ होने लगे तो उसका व्यवसाय ही चौपट हो जाय !
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गुणों का महत्त्व समझने वाला गुणियों के बीच प्रसन्न रहता है । कहा है :
गुणिनि गुणज्ञो रमते
नागुणशीलस्य गुणिनि परितोषः ।
अलिरेति वनात्कमलम्
न ददुरस्तन्निवासोऽपि ॥
[ गुणज्ञ गुणियों में रमण करता है जिसमें गुणों का प्रभाव है, वह गुणी से सन्तुष्ट नहीं होता । भौंरा जंगल से कमल पर आ जाता है, परन्तु जलमें रहने वाला मेंढक उसके पास नहीं जाता ! ]
यदि गुणज्ञ न हों तो गुणियोंके गुण भी उन ( गुणहीनों) के पास जाकर किस प्रकार दोष बन जाते हैं ? देखिये : गुरणा गुरज्ञेषु गुणीभवन्ति
ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः । सुस्वादुतायाः प्रवहन्ति नद्यः
समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः ॥
[ जो गुण गुणज्ञों के पास जाकर गुण बनते हैं, वे हो निर्गुण को पाकर दोष बन जाते हैं । नदियों का पानी बहता है, वह बहुत स्वादिष्ट होता है; किन्तु समुद्र को प्राप्त कर ( जब नदियाँ समुद्र में मिल जाती हैं, तब ) वही पानी अपेय ( खारा ) हो जाता है ]
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