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१२५ फिर भी आश्चर्यको बात है कि वे स्वयं सद्गुणों को अपनानेका प्रयास नहीं करते । वे सोचते हैं, में भले ही दुर्गुणों से भरा रहूँ; परन्तु मेरे आसपास रहने वाले सभी सज्जन हों - ईमानदार हों - सद्गुणी हों । यही वह भूल है, जो पूरे समाज को सद्गुणी बनाने में बाधक है।
निष्कलंक क्षीण चन्द्र (दूजके चाँद) की लोग जितनी उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं, उतनी सकलंक पूर्ण चन्द्र की नहीं । इससे सिद्ध होता है कि गुणों से ही गौरव प्राप्त होता है, विशाल सम्पदासे नहीं ।
ऊँचे आसन से भी गुणोंका कोई अनिवार्य सम्बन्ध नहीं है। महलकी छत पर या मन्दिरके शिखर पर बैठे कौए को भी कोई गरुड़ या हंस मानने की भूल नहीं कर सकता ।
कोई व्यक्ति नहीं चाहता कि उसे लूटा जाय, फिर भी वह स्वयं दूसरोंको लूटने का प्रयास करता है, जो गलत है। हम जैसा व्यवहार दूसरों से अपने लिए चाहते हैं, वैसा ही व्यवहार स्वयं भी दूसरों के साथ करें ।
___ मेरी बात ज़रा उल्टी है। मैं स्वयं चाहता हूँ कि आप मुझे जी भर कर लूटें । मैं चरित्रके गुणों को लुटाने आया हूँ - फ्री ऑफ चार्ज देता हूँ। जिस प्रकार बजाज पचासों तरहके थान खोल-खोल कर दिखाता है । ग्राहक कहे कि कपड़ा तो पसंद है, भाव पसंद नहीं है तो भी वह नाराज़ नहीं होता । कपड़े थान के रूप में लपेटकर फिर यथास्थान जमा देता है । मैं भी अपने प्रवचन की दुकान पर अपरिग्रह, अनुशासन, उद्यम, गौरव, चतुराई, दया, प्रामाणिकता, प्रेम, भावना, मानवता, मित्रता आदि विविध गुणों के थान खोलखोल कर तर्को, सुभाषितों, दृष्टान्तों और मनोहर कथाओं
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