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८. गुणग्राहकता
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घर घर में सूप होता है । वह क्या करता है ? उत्तम
वस्तु को अपने पास रख लेता है । थोथी वस्तुको उड़ा देता है । माली माला बनाने के लिए पौधों के पास जाता है। और फूलों को तोड़ लेता है, किन्तु काँटों को वहीं छोड़ देता है । हमें भी सब जगह से गुणों को ग्रहण करना है दोषों को छोड़ना है; परन्तु हमारा स्वभाव तो चलनी जैसा है । हम दोषोंको ग्रहण करते हैं और गुणों का त्याग कर देते हैं ।
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शरीर क्षणभंगुर है - अस्थायी है; परन्तु गुण स्थायी रूपसे आत्मा के पास रहते हैं; इसलिए गुणों की रक्षा के लिए शरीर की भी परवाह नहीं करनी चाहिये ।
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दूध न देने वाली गाय गले में लटकने वाली घंटी की मधुर ध्वनि मात्र से बाजार में नहीं बिक सकती । एक रुपये की मटकी भी लोग खूब ठोक बजा कर लेते हैं । कपड़े की दूकान पर पचास तरह का कपड़ा देखकर मुश्किल से एक-दो चुनते हैं । उसकी चमकदमक और रंग ही नहीं देखते, टिकाऊपन भी देखते हैं । किसीको नौकरीपर रखना हो तो पहले अनेक उम्मीदवारों का इंटरव्यू ( साक्षात्कार ) लेते हैं और भलीभाँति परखकर अपने लिए उपयोगी व्यक्ति का चयन करते हैं । इन सारे उदाहरणों से क्या सिद्ध होता है ? यही कि सब लोग सद्गुणियोंको पसंद करते हैं अर्थात् सद्गुणों से प्यार करते हैं ।