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एक जगह कोई उदार सज्जन किसी निर्धन को कुछ दान कर रहा था । एक कंजूस ने उसे देख लिया । वह मन - ही - मन सोचने लगा कि कितने कष्ट से सम्पत्ति अजित की जाती है - यह अजित करने वाला ही समझ सकता है । उदारता के नाम पर धन को लूटा दिया जाय तो दिवाला ही निकल जाय । जो व्यक्ति मांग रहा है, वह भी व्यर्थ ही अपना गौरव नष्ट कर रहा है । विचारकों ने किसी के सामने माँगने के लिए हाथ फैलाने को मौत से भी अधिक दु:खदायक माना है । कहा है :
माँगन मरन समान है, मत कोई माँगो भीख । माँगन ते मरना भला, यह सद्गुरु की सीख ॥
आखिर वह कंजूस अपने घर पहुँचा । पत्नी ने उसके उदास चेहरेको देखकर पूछा :
के तो गाँठ से गिर गयो के काहू को दीन ? तिरिया पूछे प्रेमसू क्यों प्रिय ! भया मलीन ? यह सुनकर पतिदेवने उत्तर में कहा :
न तो गाँठ से कुछ गिरा, ना काहू को दीन ।
देतां देख्या औरने तासों भया मलीन ॥ कंजूसों के और भी अनेक नमूने हमें जहाँ - तहाँ खोजने पर मिल जायेंगे ।
__ एक आदमी ने किसी शहर में सर्विस लग जाने के कारण एक सुविधाजनक मकान ढूढ कर किराये पर ले लिया।
एक बार उसका कोई मित्र उससे मिलने आया। मित्र को मकान दिखाने की इच्छा से वह उसे विभिन्न कमरों में
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