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११६ ले गया। एक कमरा बिल्कुल खाली पड़ा था। मित्रने पूछा कि यह कमरा किस काम आता है ।
आदमी ने कहा : “यह हमारा संगीत कक्ष है ।"
मित्र : 'लेकिन इसमें कोई वाद्य तो है नहीं । क्या आप केवल मुहसे गाते हैं ? बजाते कुछ नहीं ? शास्त्रकारोंने लिखा है :
गीतं वाद्य च नृत्यञ्च त्रिभिः सङ्गीतमुच्यते ॥ [गायन, वादन और नर्तन - इन तीनों के मिलने से “संगीत" कहा जाता है।
इस सूक्ति के अनुसार संगीत - कक्ष वही कहला सकता है, जिसमें गीत, वाद्य और नृत्य तीनोंका सयोग हो - मिलन हो ।'
आदमी ने कहा : "नाचने, गाने और बजाने की हम ज़रूरत ही नहीं समझते । पड़ोस में ग्रामोफोन पर फिल्म संगीत के रिकार्ड बजते रहते हैं, रेडियो से भी फर्माइशी गाने आते रहते हैं। इतना ही क्यों ? रेडियो से नाटक, प्रहसन, कहानियाँ, चटकूले, कविताएँ अादि भी समय - समय पर हमें सुनने को मिलती हैं। हमारा पूरा परिवार इसी कमरे में बैठ. कर मजे से सब कुछ सुनता रहता है। अन्य कार्यक्रमों की अपेक्षा हमें संगीत अधिक प्रिय लगता है; इसलिए हमने इस कमरे का नाम संगीतकक्ष रख दिया है। बात आई समझमें ?"
'जी हाँ, बिल्कुल अच्छी तरह समझमें आ गई । आपकी बुद्धिमत्ता सचमुच प्रशंसनीय है।" ऐसा कह कर मित्र वहाँ से तत्काल बिदा हो गया ।
इसी ढंग की बुद्धिमत्ता का एक छोटा – सा नमूना और देखिये :
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