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मियाँजी : "मेरा विचार तो एक ही रुपया देने का है ।"
दूकानदार : "अब आप से एक रुपया लेकर लेने का नाम क्या करूँ ? आप तो मुफ्त में ही इसे ले जाइये ।”
मियाँजी : "यदि मुफ्त में ही देना है तो दो छाते दीजिये । एक मेरी बीबी के काम आ जायगा ! "
यह है अनुदार मनोवृत्ति । ऐसी मनोवृत्ति से मनुष्य अपनी स्थिति हास्यास्पद बना लेता है !
एक बार बड़े मुल्ला बीमार पड़े और बेहोश हो गये । कुटुम्बियोंने समझा कि मर गये हैं । रोना-धोना मच गया । अड़ौसी- पड़ौसी इकट्ठ े हो गये । एक ने कहा कि मुल्ला का जनाजा शानसे निकाला जाय ।
दूसरे ने कहा : "यदि अधिक खर्च होगा तो वह मुल्ला के स्वभाव से विपरीत हो जायगा, क्योंकि वे सदा कम से कम खर्च में काम चलाने के पक्षपाती रहे हैं ।"
तीसरा बोला : “हाँ, जनाजा सादगी से निकालना ही ठीक है ।"
चौथा : "कितनी भी सादगी से क्यों न निकाला जाय, कुछ न कुछ खर्च तो होगा ही !
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मुल्ला होश में आ चुके थे । वे यह सारी चर्चा सुनकर उठ बैठे और बोले : " आप लोग इतनी चिन्ता क्यों कर रहे हैं ? मैं पैदल ही आपके साथ कब्र तक चला चलता हूँ. वहीं मर जाऊँगा । आप शान से मुझे दफना कर चले आइयेगा । जनाजे का सारा खर्च बच जायगा !
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एक सेठजी थे । वे भी बड़े कंजूस थे । एक बार बीमार
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