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मियाँजी ने कहा : "बिल्कुल नहीं; क्योंकि जूते तो रात को मैं बगल में दबाकर ही चलता हूँ !" ___ एक बार उन्हें एक छाता खरीदना था । उनकी बीबीने उन्हें समझा दिया कि आजकल लोग मनमाना भाव बोलते हैं । जो असली कीमत होती है, उससे दुगुना वताते हैं; इसलिए दूकानदार जो भाव बताये, उसका प्राधा ही तुम देनेकी तैयारी बताना ।
बड़े मुल्लाने बात गाँठ में बाँध ली । फिर बाजार में गये। वहाँ एक छाते की बड़ी - सी दूकान देखकर जा पहुंचे।
___एक छाता पसंद करके उसका भाव पूछा । दूकानदारने बताया : “यह छाता बहुत बढिया है । वैसे तो इसका मूल्य बीस रुपये है; परन्तु आपके हाथ से बोहनी करना है। इसलिए मैं सोलह रुपयों में दूंगा।"
मियाँजी को बीबी की बात याद आ गई । बोले : “मैं तो आठ ही रुपये लाया हूँ।" ।
दूकानदार : "तो आठ में ही सही । ।
मियाँजी : 'लेकिन मुझे और सामान भी तो खरीदना है । क्या आप चार रुपयों में नहीं दे सकते ?"
दूकानदार पहले ग्राहक को खाली हाथ जाने नहीं देता था; इसलिए घाटा सह कर भी छाता देने को तैयार हो गया । बोला : "चलिये, चार ही दे दीजिये ।"
मियाँजी : “यदि इसका मूल्य आप चार बता रहे हैं तो मैं दो रुपये दूंगा।'
दूकानदार : "जो आपकी इच्छा हो सो दे दीजिये । जब घाटा ही सहना है तो फिर विचार ही क्या करना ?"
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