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१९३ देवी को भवानी और देहरा को मठ कहे याही विधि घासीराम रीति प्राचरत है । दाना को चबीना दीपमाला को चिरागजाल देव के डर सों कभी दद्दो न कहत है ॥
--माषाश्लोकसागर यदि कोई सुन्दर पुष्ट बलिष्ठ जवान गाय हो, परन्तु दूध न देती हो तो उसे कौन खरीदना चाहेगा? इसी प्रकार दूसरों के काम न पाने वाली कंजूस की सम्पति चाहे कितनी भी हो, उसका कोई मूल्य नहीं।
एक बार बड़े मुल्ला को किसी आवश्यक कार्य से दूसरी जगह जाना था। दिन खराब न हो-इस दृष्टि से दिन-भर वे दूकान पर कमाई करते रहे और शाम को दूसरे गाँक. जाने का कार्यक्रम बनाया।
भोजन करके अपना बैग उठाया और घरसे बिदा हो गये। पाँच-दस किलोमीटर मार्ग तय किया ही होगा कि सहंसा उन्हें एक बात याद आई । एक ज़रूरी काम रह गया था। वे एबाउट टर्न होकर घर लौट आये।
घर आकर बीबी से बोले : “सोते समय दीपक बुझा देना, नहीं तो व्यर्थ ही रातभर तेल जलता रहेगा।"
बीबी को यह सूचित करना ही वह काम था, जिसे करने के लिए आधे रास्ते से वे लौट आये थे ।
बीबी बोली : "मियाँजी ! आपको तेल जलने की इतनी चिन्ता थी तो क्या पाँच - दस किलोमीटर चल कर यहां आने और फिर से वहाँ तक लौटते में जूते घिसने की कोई चिन्ता नहीं हुई ?"
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