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उपदेश दिया था, वह मछग्रा ही मर कर साँप बना है । जिन मछलियोंको उसने मारा था, वे सब चींटियाँ बन कर खूनसे लथपथ उसके शरीरको काट रही हैं। कर्मों का फल प्राणियोंको इसी प्रकार इस लोक में नहीं तो परलोक में अवश्य मिलता है; क्योंकि :
कडाण कम्माण न अस्थि मोक्खो ॥ [किये हुए कर्मों से (फल भोगे बिना) मुक्ति नहीं मिल सकती !]
दुष्कर्मों से चारों ओर शत्रुओं की वृद्धि होती है और सत्कर्मोसे मित्रों की । कर्मफल के सिद्धान्तको भली भांति हृदयंगम करके सबके साथ मैत्रीपूर्ण सद्व्यवहार करने में ही हमारा कल्याण है।
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