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जलने उत्तर दिया : “बहिनजी ! आग मुझे कष्ट दे रही है। मुझमें ऐसी शक्ति है कि यदि मैं इस पर आक्रमण कर दूं तो यह तुरन्त बुझ जाय; परन्तु बीच में यह पीतलका आवरण (भगोना) बाधा डाल रहा है, इसलिए मैं मजब्ररी से सब कष्ट सह रहा हूँ :
इस रूपकके द्वारा यह समझाया गया है कि आत्मा भी कर्मों के भगोने में भरी हुई है, इसलिए विवश होकर उसे दुःख भोगने पड़ रहे हैं :
ब्रह्मा येन कुलालवन्नियमितो ब्रह्माण्डभाण्डोदरे । विष्णुर्येन दशावतारगहने क्षिप्तः सदासङ्कटे ॥ रुद्रो येन कपालपाणिपुटके भिक्षाटनं कारितः ।
सूर्यो भ्राम्यति नित्यमेव गगने तस्मै नमः कर्मणे । [जिसने ब्रह्माको कुम्हारकी तरह ब्रह्माणु रूपी भाण्ड (बर्तन) बनाने में लगा दिया, विष्णु को जिसने दस अवतार लेनेकी झंझट में डाल दिया, शंकरको जिसने खप्पर हाथमें रखकर भीख मांगने के लिए भटकाया और सूर्यको जो प्रतिदिन आकाश में भ्रमण कराता है, उस कर्मको नमस्कार हो]
यह गरुडपुराणके अध्याय एक सौ तेरह का श्लोक है, किसी जैनग्रन्थ का नहीं; इसलिए ब्रह्मा-विष्णु--महेश के कार्योंका वर्णन जैनेतरमान्यताके अनुसार हुआ है । उससे असहमतिकी दार्शनिक चर्चामें न उलझकर मैं केवल उसके प्रतिपाद्य विषय की ओर ही ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ कि सारी दुनिया कर्मों से ही संचालित हो रही है। सभी संसारी जीवों को कर्म नचा रहे हैं और वे नाच भी रहे हैं :
Whatever mishap may befall you, it is on
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