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१०४ में दो गधे वहाँ आँगन में आकर लेट गये। उनकी पीठ पर सोनेकी सिल्लियाँ लदी हुई थीं । बुढिया ने दिया जलाकर देखा तो सारे आँगनमें सिल्लियाँ बिखरी पड़ी थी। उसने सारी सिल्लियाँ बटोरकर रख लीं।
हुआ यह था कि एक धनवान् सेठ दस-पन्द्रह गधोंपर सोनेकी सिल्लियाँ लाद कर अँधेरी रातमें उस धनको ज़मीन में गाड़ने के लिए जंगल में चपचाप चला जा रहा था; परन्तु अँधेरे के कारण दो गधे गधोंके उस टोले से छिटक कर उधर आ निकले थे। यदि कुत्ता जीवित होता तो वह उन्हें भौंककर भगा देता और यदि दरवाजा गिरा न होता तो भी गधे घरके अाँगनमें प्रवेश न कर पाते - बाहर ही खड़े रहते या किसी खुले द्वारवाले दूसरे घर में घुस जाते ! सारा योग अनुकूल बैठा।
चातुर्मास कालमें ही बुढियाने नौकरचाकर रख कर कारीगरों के द्वारा नई सुन्दर पक्की इमारत बनवा ली और मुनीम रखकर व्यापार शुरू करवा दिया । फिर सन्देश भेज कर बहूको और बच्चोंको भी बुलवा लिया ।
पौषध समाप्त होते ही श्रावक जब अपने घर गया तो वहाँकी समृद्धि देखकर आश्चर्यचकित हो गया। उसने अपने घरकी दशामें इस अप्रत्याशित परिवर्तनका श्रेय पोषधवतको दिया । धर्मसे अशुभ कर्मों का क्षीण किया जा सकता है - यही प्रभाव उसके हृदय पर पड़ा ।
__ एक महिला थी । वह पानी उबाल रही थी। थोड़ी देर बाद पानी में से कुछ ध्वनि प्रकट होने लगी।
महिला ने पूछा : "भैया जल ! तुम क्या कह रहे हो ? ज़रा स्पष्ट शब्दों में समझाकर कहो ।”
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