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एक चोर रातको घर में घुस आया । सेठ बुद्धिमान् था । उसने सेठानीसे कहा : "अरी ! सुनती हो ? मुझे अभी-अभी एक सुन्दर सपना आया । गाँवके बाहर बाबा जमाल खाँ पीर की दरगाह पर मैं हमेशा दिया जलाता रहा । उनकी कृपा से अपने तीन पुत्र पैदा हुए। एक का नाम बाबा की यादगार में जमाल खाँ रख दिया, दूसरे का नाम पठान और तीसरेका चोर । एक दिन पहले बेटेकी वर्षगाँठ मनाने के लिए तुमने बहुत स्वादिष्ट खीर बनाई । मेरे लिए थाली लगा दी; परन्तु मैं बच्चों के बिना कैसे खाता ? वे सड़क पर खेल रहे थे । उन्हें बुलाने के लिए मैंने जोर से आवाज़ लगाई - जमाल खाँ ! पठान ! चोर ! दौड़कर आओ ।"
उसी समय जमाल खाँ नामक सेठ का पहरेदार आवाज़ सुनकर ऊपर आया और उसने चोरको पकड़ लिया ।
कर्म भी ऐसा ही चोर है । उसे युक्ति से ही पकड़ा जा सकता है । चोर घर में घुस आया था, वैसे ही कर्म आत्मा में घुसा बैठा है । उसे पकड़ने की युक्ति है धर्म ।
एक श्रावक था । उसने चातुर्मास कालमें चार महीने का पौषधव्रत ले लिया । घरमें माँ थी और पत्नी थी। दो छोटे बच्चे थे । निर्धनताका साम्राज्य था । ऐसी अवस्था में कुछ कमाई - धंधा न करके पौषघव्रत करना, और सो भी चार महीने तक की लम्बी अवधि के लिए, पत्नी सह नहीं सकी । वह नाराज़ होकर बच्चों के साथ पीहर चली गई ।
घर में एक कुत्ता पाल रखा था, सो बरसात में घरका दरवाजा गिर जाने से मर गया ।
घर में माँ अकेली रह गई थी । एक दिन अँधेरी रात
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