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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रोता तीन प्रकार के होते हैं। कुछ होते हैं-गर्म तवे के समान, जिन पर प्रवचन के बिन्दु पड़ते ही भाप बनकर उड़ जाते हैं। कुछ होते हैं-कमल पत्र के समान, जिनपर प्रवचन के बिन्दु टिकते तो हैं; परन्तु मिथ्यात्वरूपी हवा का झोंका पाते ही नीचे गिर जाते हैं। तीसरे प्रकार के श्रोता सीपी के समान होते हैं, जिनमें प्रवचन बिन्दु मोती बनकर सीपी का जीवन बहुमूल्य बना देते हैं-धन्य बना देते हैं। मुझे सीपी के समान श्रोताओं की तलाश है। प्रत्यहं धर्म श्रवणम् ॥ [प्रतिदिन धर्मप्रवचन सुनना चाहिए ] यह सलाह उत्तम श्रोताओं के ही लिए दी गई है। एक ठाकुर साहब पहली बार किसी महात्मा का प्रवचन सुनने गये। महात्मा ने उन्हें देखकर कहा :-"आये हैं? आइये, बैठिये।" थोड़ी देर बाद ठाकुर को चिलम पीने की याद आई। वे उठने की तैयारी कर रहे थे कि महात्मा बोले :- "उठ रहे हैं? अच्छा, उठिये।" फिर ठाकुर उठकर ज्यों ही जाने लगे, महात्माजी बोले :"जा रहे हैं ? जाइये। कल फिर आइयेगा।" महात्माजी की यह कोमल मधुर वाणी ठाकुर साहब के हृदय में बस गई। रात को वे सपने में बड़बड़ा रहे थे :"आये हैं ? आइये, बैठिए।" सहसा चार चोरों ने, जो उस रात ठाकुर की हवेली में चोरी करने आये थे, यह सुना तो सहम कर वे बैठ गये। फिर सोचा कि ठाकुर बन्दुक से प्राण ले लेगा, इसलिए यहाँ से खिसक जाना ही उचित है । वे उठने लगे कि ठाकुर साहब बोले :- "उठ रहे हैं ? अच्छा, उठिये।" For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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