________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
फिर जाने लगे तो बोले :- "जा रहे हैं ? जाइये। कल फिर आइयेगा।"
उधर अपनी पल्ली में पहुंचकर भी चोरों को चैन नहीं मिला। वे भयसे काँप रहे थे कि ठाकुर सब कुछ जान गये हैं; इसलिए वे हमें छोडेंगे नहीं, यह भी हो सकता है कि वे हमारी पल्ली में ही आग लगाकर हमारे परिवारों को भी मार डालें।
आखिर विचार-विमर्श के बाद उन्होंने यही निश्चय किया कि सुबह होते ही ठाकुर साहब के सामने जाकर आत्मसमर्पण कर दिया जाय और उनसे क्षमा मांग ली जाय।
वैसा ही किया गया। प्रातः काल हवेली पर जाकर ठाकुर साहब से क्षमायाचना करते हुए उन चारों चोरों ने भविष्य में चोरी न करने की प्रतिज्ञा कर ली।
ठाकुर साहब ने सोचा कि एक दिन प्रवचन सुनने गया तो मेरा धन भी बच गया और चोरों का भी उद्धार हो गया; तब प्रतिदिन प्रवचन सुनने पर कितना लाभ होगा? आप भी शायद ऐसा ही सोच रहे होंगे! ठीक है न ?
तो लीजिये, यह प्रवचन पुस्तक आप ही के लिए है।
-पासागर
For Private And Personal Use Only