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सकम्मुणा विप्परियासुवेइ ॥ -सूत्रकृतांग १/७/११ [अपने कर्मों से ही व्यक्ति कष्ट पाता है]
गोस्वामी सन्त तुलसीदास ने भी अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ "रामचरितमानस' में लिखा है : "कर्मप्रधान विश्व करि राखा ।
जो जस करइ सो तस फल चाखा ॥" एक फकीर था। वह बस्ती में घूमते हुए गाया करता था :
भले भलाई बुरे बुराई कर देखो रे भाई !
भलाई का फल भला होता है और बुराई का बुरा । यदि किसी को इस बात पर विश्वास न हो तो स्वयं करके देख ले।
__एक औरत ने सोचा कि क्यों न करके देखा जाय । उसने दो लड्डुओं में जहर मिला दिया और उसी फकीर की झोली में वे लड्ड डाल दिये । सोचा कि मैंने फकीर के साथ बुराई की है और मरेगा फकीर ही। बुराई करने वाली मैं हूँ; परन्तु मेरी क्या हानी होगी? कुछ नहीं। इस प्रकार फकीर की बात झूठी सिद्ध हो जायगी।
फकीर भिक्षा में अन्य खाद्यसामग्री के साथ उस औरत से प्राप्त दोनों जहरीले लड्डू लेकर गाँव के बाहर बनी हुई अपनी कुटिया में चला गया ।
पहले उसने दूसरी सामग्री खाई। सोचा कि लड्डू यदि बच गये तो वे अगले दिन भी खराब न होंगे; परन्तु रोटी, खिचड़ी आदि अन्य सामग्री खराब हो जायगी; इसलिए पहले उन्हीं को खा लेना चाहिये ।
दूसरी सामग्री पर्याप्त थी। खाने से पेट भर गया।
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