________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२
अकेला ही जाता है । केवल शुभाशुभ कर्म उसके साथ रहते हैं]
आत्माका शत्रु कर्म है । कर्मका शत्रु धर्म है । शत्रुका शत्रु मित्र होता है - इस नीति के अनुसार धर्म आत्माका मित्र है।
जिस प्रकार मिट्टी के साथ सोनेका अनादिकालीन सम्बन्ध है, उसी प्रकार कर्मके साथ आत्माका भी अनादिकालीन सम्बन्ध है।
आँख में मोतियाबिन्द हो तो उससे कोई वस्तु स्पष्ट नहीं दिखाई देती, उसी प्रकार मन में कषाय (क्रोध-मानमाया-लोभ) हो तो आत्माके स्पष्ट दर्शन नहीं हो सकते ।
हमारे आत्माराम भाई शरीरकी कालकोठरी में कैद हैं। संसार भी एक कैदखाना है। दोनोंकी व्यवस्था एक-सी है।
जेलमें जब कोई नया कैदी प्रविष्ट होता है तो वह बड़ा दुखी होता है; परन्तु अन्य कैदी उसका हार्दिक स्वागत करते हैं। कहते हैं - "रोनेकी कोई ज़रूरत नहीं । हम तुम्हें कम्पनी देंगे । तुम अकेले नहीं रहोगे ।"
___ यहाँ संसारमें भी जब कर्मराजाका कैदी आता है तो वह रोता है - चिल्लाता है; परन्तु उसका थाली बजाकर, गुड़ बाँट कर स्वागत करते हैं और कम्पनी देनेके लिए सब कुटम्बी नामक कैदी उसे हाथोंहाथ लेते हैं।
कोई कह सकता है - "महाराज ! हम आपके प्रवचन में आये हैं तो क्या यह हमारी स्वतन्त्रता नहीं है ? फिर हम अपने कुटुम्बियों के कैदी कैसे ?"
मेरा उत्तर यह है कि आप यदि अपने को स्वतन्त्र मानते हैं तो यहीं बैठे रहिये बारह बजे तक ! फिर देखिये
For Private And Personal Use Only