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सचित्र जैन कथासागर भाग - १
(३)
‘पशु की बुद्धि पर तो पशु हो वह चलता है' - यह कह कर धनावह ने पुण्याढ्य के विरुद्ध विद्रोह किया और वह पद्मपुर नगर से बाहर निकल गया |
समझदार गिने जाने वाले मनुष्यों में भी वुद्धि-भेद हो गया और वे कहने लगे कि ‘ऐसे व्यक्ति को राजा कैसे माना जाये?'
एक के पश्चात् एक इस तरह अनेक व्यक्ति धनावह से जा मिले। नगर खाली होने लगा और धनावह पूर्ण राजा हो ऐसे चिह्न दृष्टिगोचर होने लगे |
पंगुराज पुण्याढ्य असमंजस में पड़ गया | इतने में हाथी का महावत बोला, 'राजन्! व्याकुल न हों। यह हस्तिराज विपत्ति में से सम्पत्ति में ले आता है, इसकी अद्वितीय शक्ति है।'
इतने में हाथी ने पंगुराज पुण्याढ्य को पीठ पर बिठाया और कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ धनावह की सेना में प्रविष्ट हो गया।
सागर की लहरें ऊपर घिर आती हैं उसी प्रकार ‘मारो मारो' करती हुई सेना ने हाथी को चारों ओर से घेर लिया। कोई कहने लगा कि ऐसे व्यक्ति को कहीं राज्य दिया जाता है?' तो कोई कहने लगा, विचारे इसका क्या दोष है? दोष तो सव हाथी का है कि वह ऐसे व्यक्ति को ले आया ।' तो कोई चतुर व्यक्ति कहने लगा कि 'हम कुछ भी कहें परन्तु यह हाथी दैवी है, यह उसे ले आया है तो अवश्य उसकी रक्षा करेगा।'
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रिमोपासा लक्षणोपेत हाथी पंगु को उठा अपनी पीठ पर बिठा कर नगर की ओर चला।