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सुनन्दा एवं रूपसेन कहकर राज प्रासाद के दूसरे भाग में राजमाता के भवन की ओर मुड़ गईं।
महालव खिड़की पर आया, अतः एक सखी उसका हाथ पकड़ कर उसे सुनन्दा के पलंग के समीप ले गई और उसे कहा, 'रूपसेन श्रेप्ठि! आप तनिक भी बोलना मत ।' __महालव मोन रहा। सुनन्दा का स्पर्श होते ही घोर कामातुर जुआरी ने सुनन्दा के साथ क्रीडा की और उसके वहाँ पड़े हुए आभूषण हस्तगत किये । इतने में सामने दीपक का प्रकाश दिखाई दिया। सखी दौड़ती हुई आई और कहने लगी, 'प्रियतम को अव विदा करो।'
सुनन्दा बोली, 'प्रियतम! हमारा दुर्भाग्य है । दीर्घ काल के पश्चात् हमारा संयोग हुआ फिर भी हम कोई वार्तालाप कर नहीं सके । अभी तो आप जाइये, जब हम पुनः मिलेंगे तव सब करेंगे।'
जुआरी प्रसन्न हो गया और यह सोचता हुआ कि शकुन अच्छे हुए राजकुमारी मिली और धन भी मिला, सीढ़ी से नीचे उतर गया। __ माता की सखियाँ आई। सुनन्दा ने मन्द स्वर में कहा, 'माताजी को कहना कि अव कुमारी के सिर की वेदना कम है, चिन्ता न करें ।'
कौमुदी महोत्सव की प्रतीक्षा करता रूपसेन भी माता-पिता को यह कह कर ‘मेरी तवियत ठीक नहीं है' घर पर रहा ।
रात्रि का प्रथम प्रहर व्यतीत हो गया। नगर में अव कोई नहीं है, यह जानने के पश्चात् सुनन्दा की रटन लगाता हुआ, भोग-सामग्री लेकर घर पर ताला लगा कर निकल पड़ा । एक दूसरे के आलिंगन के लिए तरसते आज हम परस्पर मिलेंगे, अनेक प्रेम-गोष्ठी करेंगे और विषय-सुख का आनन्द लेगें' आदि बातें सोचता हुआ रूपसेन मार्ग में चला जा रहा था कि एक विना किसी आधार के खड़ी हुई दीवार गिर पड़ी
और उसके नीचे दब कर वह मर गया | मृत्यु के समय सुनन्दा के प्रति राग के अतिरेक के कारण ऋतु-स्नाता सुनन्दा की कुक्षि में महालव जुआरी द्वारा किये गये संसर्ग से गर्भ में रूपरोन उत्पन्न हुआ
इस कारण ही शास्त्रकारों को कहना पड़ा है कि विष एवं विषयों में सचमुच अत्यधिक अन्तर है। विष खाने से मृत्यु होती है परन्तु विषयों के तो स्मरण मात्र से ही मृत्यु हो जाती है। ___ माता के सहचरियों के जाने के पश्चात् सुनन्दा ने आभूषण खोजे तो अनेक आभूषण नहीं मिले, परन्तु उसने राग-दशा से विचार किया कि टूटे हुए आभूषण ठीक कराने के लिए प्रियतम ले गये होंगे, जिन्हें ठीक कराने के पश्चात् पुनः भेज देंगे। परन्तु