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सचित्र जैन कथासागर भाग - १ राजमाता यशोमती जव सुनन्दा को लेने के लिए आई तो उसने सिर पर लेप किये हुए व वेदना से तड़पती हुई पुत्री को देखकर कहा, 'पुत्री! अचानक यह क्या हो गया?'
'माता! अभी चार घड़ी पूर्व सिर में असह्य वेदना उठी है | किस कारण वेदना हो रही है, यह समझ में नहीं आ रहा।' दुःखमय मन्द स्वर में सुनन्दा ने कहा । 'पुत्री! चाहे सव लोग जायें, मैं कौमुदी महोत्सव में नहीं जाऊँगी।' 'नहीं, माँ! मेरे कारण समस्त प्रजा के रंग में भंग न करें । ऐसा तो मुझे अनेक बार हो जाता है, परन्तु फिर वेदना शान्त हो जाती है । तुम जाओ, ठीक होने पर मैं अपनी दोनों सखियों के साथ वहाँ आ जाऊँगी । तुम चिन्ता मत करना ।' यह कहकर सुनन्दा ने अपने सेवकों के परिवार को भी माता के साथ कौमुदी महोत्सव में भेज दिया ।
राजमाता के चले जाने पर सुनन्दा को शान्ति मिली। उसे लगा दीर्घ काल से मैं जिसकी प्रतीक्षा करती थी, जिसका स्मरण करती थी, वह प्रियतम रूपसेन आज मुझे शान्ति से मिलेगा और हम परस्पर विरह-वेदना शमन करेंगे। उसने अपनी शय्या के निकट की खिड़की जो पीछे की ओर थी, वहाँ रस्सी की सीढी लगा रखी थी और रूपसेन को उसे हिलाने की सूचना सखी के द्वारा पहुँचा दी थी। अतः वह और उसकी सखियाँ वार वार उस ओर जाती और लौट आती थीं।
'हाय! जुए में सब कुछ हार गया। मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं बची और ऋण तो अभी तक हजारों रूपयों का ऊपर है | क्या करूँ? चलूँ, आज नगर सूना है अतः किसी धनाढ्य व्यक्ति की दूकान अथवा घर का ताला तोडूं और जो कुछ प्राप्त हो जाये उससे पुनः कल दाव लगाऊँ।' यह सोचते हुए नगर की गलियों में घूमते महालव नामक जुआरी ने राजमहल की खिड़की पर टंगी हुई सीढ़ी देखी और 'चोर में मोर' कहावत के अनुसार उसे हिलाई तो तुरन्त दो दासीयाँ भागी हुई आई और रूपसेन का यह कह कर स्वागत किया कि 'रूपसेन आपका स्वागत है ।' महालव ने सम्मति सूचक 'हाँ' कहकर संक्षेप में वात समाप्त करके सीढ़ी पर चढ़ना प्रारम्भ किया।
इस ओर राजमाता ने अपनी सखियों को सुनन्दा का पता लगाने के लिए और पूजा के कुछ उपकरण लेने के लिए भेजा। उन्हें राज प्रासाद में प्रविष्ट होते हुए सुनन्दा ने दूर से देख लिया, अतः हृदय धड़कने लगा कि 'रंग में यह कैसा भंग' हो रहा है? परन्तु प्रत्युत्पन्न मति के अनुसार उसने समस्त दीप वुझवा दिये और सखी के द्वारा उन आने वाली स्त्रियों को कहलवा दिया कि कुमारी को दीपकों की ज्योति सहन नहीं होने से दीपक बुझवा दिये गये हैं और अब उन्हें तनिक नींद लगी है अतः कोई बोलना मत।' आगन्तुक स्त्रियाँ राजमाता का पूजा का सामान लेकर, लौटते समय आने का