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________________ ३ सचित्र जैन कथासागर भाग - १ वे सव आभूषण क्यों नहीं ले गये? क्या करते? उस समय कहाँ शान्ति थी? कौमुदी महोत्सव सम्पन्न होने पर नगर-जन लौट आये । रूपसेन के पिता वसुदत्त, और उसके भाई धर्मदत्त, देवदत्त और जयसेन आदि परिवार भी लौट आया । घर पर ताला लगा था। तनिक जाँच-पड़ताल कराने के पश्चात् घर खुलवाया और चारों ओर रूपसेन की खोज करवाई, परन्तु उसका कोई पता नहीं लगा। राजा कनकध्वज ने स्थान-स्थान पर सैनिक भेजे; कुँए, तालाब, वावडी, जंगल, पर्वत की खाइयाँ, उपवन, चोरों के अड्डे - इस प्रकार जहाँ जहाँ सन्देह हुआ, वहाँ वहाँ सर्वत्र जाँच करवाई, परन्तु रूपसेन का कोई पता नहीं लगा। यह वात सुनन्दा के कानों में भी पहुँची। उसने भी गुप्त रिति से रूपसेन की अत्यन्त खोज करवाई और मान लिया कि आभूषण ले जाते समय उनका चोरों ने अपहरण कर लिया होगा अथवा उनका वध कर दिया होगा। एक माह व्यतीत होने पर सुनन्दा का स्वर भारी हो गया । सर्दी, देह टूटना, शिथिलता आदि गर्भ के लक्षण सुनन्दा को प्रतीत होने लगे। चतुर सखी ने क्षार आदि औषध से गर्भपात करा कर राजकुमारी की लाज वचाली । गर्भपात होने पर रूपसेन का जीव मर कर सॉप हुआ। (६) रूपसेन भव तीसरा-चौथा-पाँचवा, छठ्ठा सखी के द्वारा सुनन्दा ने राजमाता को विवाह के विषय में सूचित किया तब राजा कनकध्वज ने क्षिति-प्रतिष्ठित नगर के राजा के साथ सुनन्दा का विवाह किया और उत्तम दहेज लेकर वह क्षिति-प्रतिष्ठित नगर में गई। साँप बना रूपसेन का जीव घूमता-घूमता सुनन्दा के राजप्रासाद में प्रविष्ट हुआ और उसे देखते ही मोह-वश उसके समक्ष फन उठा कर डोलने लगा। सुनन्दा चीख मार कर भागने लगी, परन्तु साँप ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। अतः उसके पति ने साँप का संहार करवा दिया। वसन्त ऋतु का समय था | सुनन्दा एवं उसका पति उद्यान में बैठे थे। संगीत की स्वर लहरियां चल रही थी। उस समय रूपसेन का जीव जो कौआ बन गया था, वह सुनन्दा को देख कर ‘काँव-काँव' करने लगा। राजा क्रोधित हुआ और रंग में भंग करते कौए को मार दिया। एक वार सुनन्दा एवं उसके पति ग्रीष्म ऋतु में बरगद के वृक्ष के तले वैठे थे । भूमि पर जल छिड़का हुआ था । वहाँ एक हंस आया और सुनन्दा के सामने देख कर हर्प से मधुर ध्वनि करने लगा। राजा-रानी उसे वरावर निहार रहे थे। इतने में एक कौआ राजा पर चोंच मारने लगा। जिससे राजा को क्रोध आया और उसने तीर छोड दिया।
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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