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मुनिदान अर्थात् धना एवं शालिभद्र का वृत्तान्त
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के रस का लाभ रसिक लोग किस प्रकार लेते हैं उसका स्वप्न में भी मुझे ध्यान नहीं था, जिसे मैं यहाँ निहार रहा हूँ। क्या इस भवन के रत्नजड़ित चित्र हैं? क्या इस भवन के पायदान ! झूमर ! क्या इस भवन की स्फटिक रत्न मय भूमि एवं वैभव ! एक के पश्चात् एक मंजिल चढ़ते हुए राजा को मनुष्य गति का पामर मानव मानो एक के पश्चात् एक देवलोक में जा रहा हो उस प्रकार प्रतीत हुआ । चौथी मंजिल पर राजा सिंहासन पर बैठा । उसने आस-पास दृष्टि फिरा कर भद्रा सेठानी से पूछा, 'शालिभद्र कहाँ है ? ' 'महाराज ! बुला लाती हूँ। वह ऊपर सातवी मंजिल पर है ।'
'वत्स!' कह कर माता ने सातबी मंजिल पर पाँव रखा। पुत्र वैठ गया। माता कदाचित् ही ऊपर आती थी, अतः शालिभद्र को लगा कि अवश्य ही किसी अनिवार्य कार्य से माताजी ऊपर आई हैं।
शालिभद्र ने माता का अभिवादन किया और पूछा, 'माता! क्या आज्ञा है ?" 'पुत्र! अपने यहाँ श्रेणिक आये हैं, उनको पहचान कर तू उनसे परिचय कर।' 'माता! इसमें मुझे क्या पूछती हो ? श्रेणिक हो, राजा हो अथवा कोई भी हो; उसकी आवश्यकता हो तो आप मूल्य देकर खरीद लें। मुझे कोई पहचान नहीं करनी और परिचय नहीं करना ।'
'पुत्र ! श्रेणिक कोई किराना नहीं है। वे तो अपने स्वामी, राजा हैं। उनकी नाराजगी से हम घड़ी भर में उखड़ सकते हैं । '
'क्या माता, श्रेणिक हमारा ऊपरी है ? हमारा स्वामी है ? उसकी नाराजगी से हम घड़ी भर में नष्ट हो जायें, हम पामर हैं ?'
माता को प्रतीत हुआ पुत्र को मैं अधिक स्पष्ट करके दुःखी न करूँ, इस कारण उसने कहा, 'तू मेरे साथ चल ।'
शालिभद्र और भद्रा नीचे आये । मोर वर्षा के लिए तरसता है उसी प्रकार उसके दर्शन हेतु तरसते श्रेणिक ने शालिभद्र को देखने के लिए मुँह ऊपर किया । सम्पूर्ण परिवार में विजली की क्षणिक चमक जिस प्रकार सव को प्रकाशमय कर देती है उसी प्रकार उसने सबको ज्योतिर्मय कर दिया । श्रेणिक खड़ा हुआ, शालिभद्र का आलिंगन किया और उसे कुछ समय में गोद में बिठाया । इतने में तो अग्नि के सम्पर्क से जिस प्रकार मक्खन पिघलता है उसी प्रकार उसके पसीने की धाराएँ बह चली ।
श्रेणिक ने शालिभद्र को मुक्त किया और कहा, 'पुत्र, तू इच्छानुसार वैभव का उपभोग कर। ऐसे वैभव से हम और राजगृही गौरव का अनुभव करते हैं ।'
शालिभद्र ऊपर गया, राजा को स्नान, भोजन के लिए निमन्त्रण दिया । स्नान करते समय राजा की अंगूठी गिर गई। चतुर दासी समझ गई कि राजा की अंगूठी खो गई