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सचित्र जैन कथासागर भाग - १ उतार कर कुँए में फेंक दिये हैं और ऐसी उतरी हुई वस्तु भला राजा को कैसे दी जा सकती है?'
मंत्री द्वारा कही गई वात अभयकुमार ने सुनकर राजा को कह दी। राजा, रानी, अभयकुमार सब को आश्चर्य हुआ कि ऐसा पुण्यशाली नागरिक हमारे नगर में निवास करता है जिसकी स्त्रियाँ सवा लाख स्वर्ण-मुद्राओं के मूल्य के वस्त्र आज पहन कर कल फैंक देती हैं?
'अभय! वुला उस शालिभद्र को | मुझे उस पुण्यशाली के दर्शन करने हैं' - श्रेणिक नं अत्यन्त उत्सुकता से कहा।
अभयकुमार शालिभद्र के निवास पर गया। उसकी द्धि देख कर वह अवाक् रह गया । उसने 'भद्रा माता को कहा, 'माता! आपके पुत्र को राजा निहारना चाहते हैं।' 'मंत्रीवर! हमारा परम पुण्योदय है कि राजा को हमारा स्मरण आया, परन्तु मेरा पुत्र जिसने सुख एवं वैभव के अतिरिक्त कुछ भी देखा नहीं है, अत्यंत सुकुमार होने से राजमार्ग में उड़ने वाली धूल भी उसके लिए असह्य वनेगी, अतः आप युक्तिपूर्वक राजाजी को हमारे निवास पर लाकर क्या हमारा निवास पावन नहीं करेंगे? राजा लोग सदा मंत्रियों के नेत्रों से देखने वाले होते हैं।'
अभयकुमार को यह कार्य दुष्कर प्रतीत हुआ परन्तु विचार करके उन्होंने कहा, 'आप तनिक भी चिन्ता न करें। मैं और धन्यकुमार सब ठीक कर लेंगे।'
अभयकुमार राजमहल में गया और श्रेणिक को शालिभद्र के आवास पर लाने की युक्ति सोचने लगा।
'महाराज! क्या शालिभद्र की समृद्धि! क्या उसका वैभव! शालिभद्र को यहाँ निहारने की अपेक्षा तो उसके आवास पर ही जाकर हम निहारें तो ही उसकी समृद्धि का अनुमान लगेगा । शास्त्रों में दोगुंदक देव सुने हैं, देवों की ऋद्धि-समृद्धि की प्रशंसा सुनी है, परन्तु यहाँ तो देव अर्थात् शालिभद्र और देवभवन अर्थात् शालिभद्र की हवेली । महाराज! उसने न तो आज तक कभी भूमि पर पाँव रखा है और न उसे संसार की किसी रीतिरिवाज का ध्यान है।
राजा का मन शालिभद्र के निवास पर जाने का हुआ और भद्रा सेठानी ने निवेदन किया जिसे राजा ने सम्मान पूर्वक मान्य कर लिया।
पग-पग पर सम्मान प्राप्त करता हुआ श्रेणिक राजा गोभद्र सेठ की हवेली पर आया और एक के पश्चात् एक मंजिल चढ़ते-चढ़ते राजा का मन विचार में पड़ गया। राजगृही का प्रतापी गिना जाने वाला मैं श्रेणिक सचमुच इस धनी सेठ के समक्ष रंक हूँ। संसार