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सचित्र जैन कथासागर भाग - १ धूर्त व्यक्ति काँप उठा, ‘मंत्रीवर!' कहते हुए उसकी जीभ रुक गई । वह नत मस्तक हो गया और राजा ने धूर्त को निकाल दिया | गोभद्र सेठ घर गये और सिर पर आई आपत्ति टल जाने से अत्यन्त प्रसन्न हुए। गोभद्र सेठ के सुभद्रा नामक सुलक्षणी पुत्री थी, जिसे सेठ ने धन्ना को व्याह दी और उसके साथ स्थायी सम्बन्ध स्थापित कर लिया |
राजगृही में धन्ना वुद्धि-निधान माना जाने लगा | श्रेणिक वात वात में धन्यकुमार को पूछता। कल का परदेशी धन्ना आज राजगृही के श्रेणिक के समस्त मंत्रियों में मुख्य मंत्री बन गया।
थोड़े दिन व्यतीत हुए कि भटकते-भटकते भाई और माता-पिता राजगृही में आये । धन्ना ने उन्हें पहचान लिया। उसमें परिवार-प्रेम जाग्रत हुआ, उन सबका सत्कार किया
और उन्हें अच्छे स्थान पर रखा, परन्तु कुछ ही दिनों में वे भाई सब भूल गये और धन्ना से ईर्ष्या करने लगे।
इतने में वहाँ एक ज्ञानी मुनि मिले। उन्होंने धन्ना द्वारा पूर्व भव में प्रदत्त दान के प्रवाह और तीन भाईयों द्वारा दिये गये दान के पश्चात् किये गये पश्चाताप की बात कही। तीनों भाई दीक्षित हो गये और धन्ना ने श्रावक व्रत ग्रहण किया।
एक बार धन्नाजी स्नान करने बैठे थे । सुभद्रा उन्हें स्नान करा रही थी, उस समय
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हारमामा
धत्रा ने धूर्त से कहा, तूं यदि तेरी यह दूसरी आँख दे दे तो उससे तोल-आकार मिला कर शेठ तुझे तेरी आंख तुरंत दे देंगे.