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मुनिदान अर्थात् धन्ना एवं शालिभद्र का वृत्तान्त
९७ चला गया था, जिससे पग-पग पर श्रेणिक को अत्यन्त परेशानी उठानी पड़ती थी।
महाराजा श्रेणिक का सेचनक हाथी एक बार पागल हो गया | मार्ग में जो आता उसे वह तोड़ डालता था, वालकों को गैंद की तरह उछाल देता और घर एवं दूकानें तोड़ डालता था!
राजगृही में इस हाथी को वश में करने वाला कोई नहीं मिला । राजा ने ढिंढोरा पिटवाया | धन्ना ने हाथी को वश में करने का कार्य अपने सिर लिया। उसने युक्तिप्रयुक्ति से हाथी को वश में कर लिया। अतः उसका जय जयकार हुआ । जैसा पहले अभयकुमार वुद्धि-निधान गिना जाता था वैसा ही अव राजगृही में धन्यकुमार माना जाने लगा। राजा को कोई कठिनाई आती तो उसका निराकरण धन्य को ही करना पड़ता था।
राजगृही में गोभद्र सेठ रहता था | उसके पास अपार सम्पत्ति थी और उसकी प्रतिष्ठा भी बड़ी थी । रवर्ण के ढेर के ढेर उसके घर लगते थे । आधी रात के समय किसी को धन की आवश्यकता पड़ती तो लोग गोभद्र के घर जाकर ले आते | __ एक वार एक काने धुर्त ने दुकान पर बैठे हुए सेठ के समक्ष एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ रख कर एक आँख मांगी। सेठ ने कहा, 'कैसी आँख?'
'सेठ! चालाकी रहने दो। प्राप्त की हुई प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल जायेगी, आँख दे दीजिये।
वह काना धूत महाराज श्रेणिक के दरवार में पहुंचा और उसनं राजा से सठ के विषय में परिवाद किया । राजा ने गोभद्र सेठ को बुलवाया । सेठ ने कहा, 'मैं निर्दोष हूँ। समस्त मंत्री सोच में पड़ गये। कोई व्यक्ति समस्या सुलझा नहीं सका | तव धना वोले, गोभद्र सेठ! लाख मुद्राएँ ले लो और आँख दे दो | लाख मुद्राएँ जैसी बड़ी रकम वैसे ही आपको कोई देने आयेगा?' ।
धूर्त हर्पित होकर बोला, ‘मंत्रीबर! मुद्राओं की आवश्यकता के खातिर लोग मुझे काना काना कहते हैं वह सहन किया, परन्तु अब मैं काना नहीं रहना चाहता | मेरी आँख दिलवा दो।' 'अवश्य, तुझे अपनी आँख मिलनी चाहिये, चिन्ता मत करो। परन्तु सुन, ‘सेठ राजगृही के बड़े धनी व्यक्ति हैं । इनके घर पर लोग अनेक आभूषण गिरवी रख कर जाते हैं। अधिक धन की आवश्यकता पड़ने पर अनेक व्यक्ति नेत्र भी गिरवी रखकर जाते हैं । सेठ के यहाँ अनेक आँख हैं ! उनमें से तेरी आँख कैसे ढूँढ़ी जाये? तु यदि तेरी यह दूसरी आँख दे दे तो उससे तोल आकार मिला कर सेठ तुझं तुरन्त आँख दे देंगे।'