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मुनिदान अर्थात् धन्ना एवं शालिभद्र का वृत्तान्त उसकी आँखों में से धन्ना की पीठ पर आँसू पड़े । उष्णता प्रतीत होने पर धन्ना ने पीछे देखा तो सुभद्रा के नेत्रों में आँसू थे।
धना ने सुभद्रा को पूछा, 'तू रोती क्यों है।' 'मेरे भ्राता शालिभद्र को संवम की रट लगी है । वह नित्य एक पत्नी का त्याग करता है । बत्तीस दिनों में वह सब छोड़ कर चला जायेगा | सुख में पला हुआ इकलौता भ्राता भावी कप्टो को कैसे सहन करेगा?' ___ 'यह काई संयम की धुन कही जाती है? जिसे धुन लगे वह क्या कभी थोड़ा थोड़ा छोड़ता होगा' धन्ना ने हँराते-हँसते कहा ।
'नाथ! ये सब बातें कहने की होती हैं परन्तु त्याग करना कठिन है । यह तो अनुभव के विना समझ में नहीं आता। करके देखो तो पता चले।' ‘सुभद्रा, सच्ची उपकारी है। मुझे तेरी अनुमति की आवश्यकता थी । देख, अव मैं जाता हूँ।'
सुभद्रा आदि आठों पत्नियाँ आँसू टपकाती रहीं और धन्नाजी सब छोड़ कर दूर दूर चल दिये।
शालिभद्र
(१) प्रकृष्ट पुण्यशालियों को धन अर्जित करना नहीं पड़ता | उनका पुण्य ही उनके समक्ष राम्पत्ति, वैभव एवं भोग-सामग्री प्रस्तुत करता है । ऐसे पुण्यशालियों में परम प्रकृष्ट शालिभद्र का जन्म राजगृही के करोड़पति सेठ गोभद्र एवं सेठानी भद्रा के घर हुआ था।
यह जीव भद्रा के गर्भ में अवतरित होने पर उसने स्वप्न में शालि से परिपूर्ण खेत देखा । पुत्र का जन्म होने पर स्वप्न के अनुसार सेठ ने उसका नाम 'शालिभद्र' रखा।
पाँच धाय-माताओं के द्वारा लालन-पालन किया जाता हुआ शालिभद्र वड़ा हुआ और उसने एक के पश्चात् एक इस तरह बत्तीस कन्याओं के साथ विवाह किया ।
गोभद्र सेठ ने अपनी पुत्री सुभद्रा का विवाह धन्ना के साथ कर दिया था और पुत्र का बत्तीस गुलक्षणी युवतियों के साथ विवाह किया। उन्होंने करोड़ों की सम्पत्ति से युक्त घर शालिभद्र को सौंप कर दीक्षा अङ्गीकार की। पुत्र-मोह के कारण भद्रा सेठानी के लिये दीक्षा का उदय नहीं आया ! चे सदा पत्र की देखभाल में निमग्न रहती। अल्प काल के उत्तम चारित्र ने गोभद्र को महर्द्धिक देव बनाया ।