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________________ ७६ सचित्र जैन कथासागर भाग २ वुरा कार्य करते समय भी दुःख देता है, उसी प्रकार उसका फल प्राप्त होता है तब भी वह दुःख देता है । तत्पश्चात् रूपमती ने तिलकमंजरी के साथ सरसाई (मंत्रणा ) करना बन्द कर दिया, स्वभाव में अत्यन्त धीरता लाकर उसने अत्यन्त सुकृत उपार्जन किया । राजन्! यह कोशी वीरमती रानी बनी क्योंकि मृत्यु के उपरान्त वह गगनवल्लभ राजा की पुत्री वीरमती बनी और उसका विवाह राजा वीरसेन के साथ हुआ ! हे राजा ! रूपमती वह तू स्वयं चन्द्र, तिलकमंजरी वह प्रेमला लच्छी, साध्वी को फाँसी खाने से रोकने वाली सुरसुन्दरी वह गुणावली, गले में फाँसी खाने के लिए तत्पर साध्वी वह कनकध्वज, कोशी का रक्षक वह सुमति मंत्री और कायर का रक्षक वह हिंसक मंत्री, तिलकमंजरी एवं रूपमती का पति शूरसेन वह शिवकुमार नट, रूपमती की दासी वह शिवमाला और काबर का जीव वह कपिला धाय माता । श्रीमुनिसुव्रत जिनजीये भाख्या, इम पूरव भव सहुना रे सभापति समज समज तू कहिये तुझ किं बहुना रे कीधुं कर्म जे उदये आवे तिहां नहीं कोईनो चारो रे काढयो छे एम सघले आम आपणो वारो रे ।। राजन् ! तुमने कोशी के पंख उखाड़ दिये थे, अतः वीरमती ने इस भव में उसे पक्षी बनाकर वैर लिया । तिलकमंजरी ने पूर्व भव में साध्वी पर मिथ्या दोषारोपण किया था, अतः इस भव में साध्वी का जीव कनकध्वज कुष्ठि के रूप में बन कर प्रेमला लच्छी बनी उस पर विषकन्या का आरोप लगाया । पूर्व भव में कोशी के रक्षक का रूपमती के समक्ष कुछ नहीं चला, उस प्रकार इस भव में गुणावली का वीरमती के समक्ष रोने के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं चला। मरती मरती कोशी को रूपमती की दासी ने संकल्प कराया था, अतः कोशी से बनी वीरमती ने दासी से बनी शिवमाला को मुर्गा उपहार में दिया । हे चन्द्र राजा ! इस प्रकार तुम्हारे पूर्व भव का अधिकार एवं सम्बन्ध है और इस कारण इस भव के प्रेम अथवा वैर के सम्बन्ध आश्चर्यकारक नहीं हैं। संसार में सर्वत्र इसी परम्परा का साम्राज्य है । (३) पूर्वभव का सम्बन्ध श्रवण करके चन्द्र राजा विरक्त हो गया। उसने गुणशेखर को आभा के राज्य-सिंहासन पर बिठाया और मणिशेखर आदि राजकुमारों को अन्य राज्य प्रदान करके प्रसन्न किये। चन्द्र राजा के साथ गुणावली, प्रेमला, सुमति मंत्री, शिवकुमार, शिवमाला एवं सात सौ रानियाँ दीक्षा अङ्गीकार करने के लिए तत्पर हुई । गुणशेखर ने दीक्षा का महोत्सव
SR No.008713
Book TitleJain Katha Sagar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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