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________________ सचित्र जैन कथासागर भाग - २ हाथ जोड़कर कहना, हे नदी माता! मेरे देवर मुनि ने दीक्षा ग्रहण की तब से आज तक यदि मेरे पति ने शुद्ध रूप से ब्रह्मचर्य का पालन किया हो तो मुझे सामने तट पर जाने के लिए मार्ग दो।' रानी को मन में हँसी आई। वह तो अच्छी तरह जानती थी कि देवरमुनि की दीक्षा के पश्चात तो उसके सोम, शर्मा आदि पुत्र हुए थे, परन्तु राजा के इस प्रकार कहने का कोई कारण होगा, यह मानकर पति की वात में सन्देह न करके परिवार के साथ प्रस्थित हुई और नदी के तट पर आकर कहा, 'देवी! मेरे मुनि को वन्दन करने का नियम है। मेरे पति ने मेरे देवर सोम मुनि की दीक्षा के दिन से लगा कर आज तक पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन किया हो तो मुझे मार्ग दो।' रानी पाँच-दस मिनट हाथ जोड़ कर इस प्रकार प्रार्थना करती रही। इतने में नदी का प्रवाह बदला और उद्यान की ओर जाने का मार्ग छिछला (कम पानी वाला) हो गया। रानी नदी को पार करके सामने किनारे पर गई उसने भाव पूर्वक मुनि को वन्दन किया और एक एकान्त स्थान पर उसने भोजन बना कर मुनि को आहार प्रदान किया और स्वयं ने पारणा किया। __ पारणा करने के पश्चात् पुनः मुनिवर को वन्दन करके रानी बोली, 'भगवन्! मैं यहाँ आई तब नदी दोनों किनारों से पूर्ण वेग से वह रही थी। मैंने तट पर आकर कहा, 'देवी! मेरे देवर मुनि ने दीक्षा ग्रहण की उस दिन से मेरे पति ने पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन किया हो तो मुझे सामने तट पर जाने का मार्ग प्रदान करो। भगवन्! नदी ने मार्ग दिया और हम यहाँ आये, परन्तु मुझे यह समझ में नहीं आ रहा कि ये कैसे हुआ? राजा के तो आपकी दीक्षा के पश्चात् अनेक पुत्र हुए हैं, फिर ग्रहमचर्यव्रत कैसे रहा?'. ___ मुनिवर ने कहा, 'भद्रे! पाप एवं पुण्य में मन ही कारण है। सूर राजा ने मेरी दीक्षा के पश्चात् राज्य संचालन किया और गृहस्थ धर्म का पालन किया, परन्तु उनका मन सदा संयम में ही रहा है। उन्होंने मन से यह सब वस्तु भिन्न ही मानी है। अतः उनका प्रभाव नदी माता ने स्वीकार किया।' रानी ने आश्चर्य से सिर हिलाया। उसके मन में राजा के प्रति अत्यन्त सम्मान उत्पन्न हुआ और वह बोली, 'अहो! कैसा उनका गम्भीर हृदय और कैसी उनकी धीरता!' __ सन्ध्या का समय हुआ। वर्षा तो वैसी ही हो रही थी नदी दोनों तटों पर पुनः वेग पूर्वक वह रही थी रानी सोचने लगी कि समाने किनारे पर कैसी जाऊँगी? तब मुनि के कहा, 'भद्रे! घबराओ मत । तुम नदी के तट पर जाकर कहना कि, 'मेरे देवर मुनि ने आज तक उपवास किये हों तो हे नदी माता! मुझे मार्ग दो।' रानी को यह सुनकर पहले से भी अधिक आश्चर्य हुआ क्योंकि अभी ही उसने मुनि को आहार प्रदान किया था । रानी ने नदी के तट पर आकर कहा, 'हे नदी माता! सोम मुनि दीक्षा के दिन
SR No.008713
Book TitleJain Katha Sagar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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