________________
गृहस्थ होते हुए भी ब्रह्मचारी एवं आहार करते हुए भी उपवासी अर्थात् सूर एवं सोम का वृत्तान्त
(३०)
गृहस्थ होते हुए भी ब्रह्मचारी एवं आहार करते हुए भी उपवासी
अर्थात्
सूर एवं सोम का वृत्तान्त
५५
(१)
सूर एवं सोम दोनों सगे भाई थे। सूर बड़ा था और सोम छोटा । सूर राजा था, सोम युवराज था । एक दिन श्रावस्ती नगरी में धर्मवृद्धि नामक आचार्य महाराज का पदार्पण हुआ । उनकी देशना श्रवण करके सोम को वैराग्य हो गया और उसने दीक्षा ग्रहण कर ली ।
अल्प काल में ही सोम मुनि ने ग्यारह अंग आदि शास्त्रों का अध्ययन किया और उन्होंने तप से अपनी देह को अशक्त कर दिया और साथ ही साथ उन्होंने अपने मन को भी अनासक्त बना दिया।
राजा सूर राज्य का संचालन करते हुए प्रजा का पालन करने लगे, परन्तु उनका मन तो सोम के संयम के अनुमोदन में ही था ।
(२)
'राजन् ! उद्यान में राजर्षि सोम का आगमन हुआ है' उद्यान पालक ने आकर राजा को सूचना दी।
राजा, रानी तथा समस्त परिवार उद्यान में गये और मुनिवर की देशना श्रवण करके लौट आये। रानी ने उस समय ऐसा अभिग्रह ग्रहण किया कि जब तक राजर्षि सोम यहाँ रहेंगे तब तक उनको वन्दन किये बिना में आहार ग्रहण नहीं करूँगी।
(३)
नगरी एवं उद्यान के मध्य एक नदी थी, जो वर्षा ऋतु में तो पूर्ण वेग से बहती परन्तु अन्य ऋतुओं में छिछली रहती। उस दिन रात्रि में घोर वृष्टि हुई, नदी पूर्ण वेग से बहने लगी। रानी ने राजा को अपने अभिग्रह की बात की कि 'स्वामि ! अब क्या करेंगे ? नदी तो पूर्ण वेग से बहती होगी, सामने किनारे कैसे जायेंगे ?'
राजा ने कहा, 'घवराओ मत। तुम नदी पर जाओ और तट पर खड़ी रह कर