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सचित्र जैन कथासागर भाग - २ देवियाँ बोली, 'जिनदास! हम अपने स्वार्थ को रो रही हैं। पहले इसलिए रो रही थी कि यदि वह माँस भक्षण करेगा तो नीच गति में जायेगा और हम उसके समान उत्तम नाथ से वंचित रहेगी। अब हम इसलिये रो रही हैं कि वह आराधना से इतना अधिक ऊँचा चला गया कि हमारा सौधर्म देवलोक छोड़ दिया परन्तु सीधे बारहवें देवलोक में जा बैठा। जिनदास! हमारे लिए तो उसका वियोग ही रहा।
इस प्रकार 'चेल्लण पार्धनाथ तीर्थ' की ख्याति करनेवाला वंकचूल सामान्य गिने जाने वाले चार नियमों का दृढ़ता पूर्वक पालन करके जीवन में अनेक पाप करने पर भी उन सबकी आलोचना लेकर उच्च गति में गया; तो फिर हृदय पूर्वक धर्म समझ कर उसमें ओतप्रोत होने वाले का तो क्या कल्याण नहीं होगा?'
(उपदेश प्रासाद, श्राद्धविधि से)