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सचित्र जैन कथासागर भाग - २ यह अपराध आपके अनुज महापद्म का है, जिप्सने अपात्र मंत्री पर इतना अधिक विश्वास किया।'
विष्णुकुमार ने मुनियों तथा संघ की ओर दृष्टि डाली तो उन्हें ज्ञात हुआ कि संघ यह रूप समेट कर क्षमा प्रदान करने का कह रहा था । विष्णुकुमार ने रूप समेट लिया । नमुचि भूमि पर ही नहीं कुचला गया परन्तु वहुल कर्मी बन कर घोर पाप में कुचला गया और विष्णुकुमार तीन कदमों से त्रिविक्रम कहलाये।
हस्तिनापुर ने इस प्रसंग को जीवन-मरण का यह प्रसंग अनुभव किया। उन्हें लगा कि विष्णुकुमार का क्रोध समेटा न गया होता तो हस्तिनापुर का चिह्न तक शेष नहीं रहता और साथ ही साथ नमुचि के अत्याचारों से भी विष्णुकुमार का आगमन न होता तो उससे मुक्ति प्राप्त नहीं हो पाती। इस प्रकार दोनों कारणों से दूसरे दिन हस्तिनापुर में प्रणाम करने की प्रवृत्ति चली और वह दिन मांगलिक रूप माना गया। ___ तत्पश्चात् पद्मोत्तर ने हस्तिनापुर का राज्य सम्हाला और वह भी पुत्र को राज्य सौंप कर दीक्षित हो कर मोक्ष में गये । नमुचि साधु को विडम्वना देने के कारण क्रोध से आग बबूला होता हुआ नरक में गया।
(त्रिषष्टिशलाका - उपदेश प्रासाद से)