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________________ तीन कदम अर्थात् विष्णुकुमार मुनि ने उनका सम्मान किया, परन्तु नमुचि ने उनके सामने तक नहीं देखा। विष्णुकुमार योले, 'राजन् नमुचि! ये मुनि वर्षाकाल में कहाँ जायें?' 'मैं कुछ नहीं समझता । उन्हें सात दिनों में मेरे राज्य की सीमा छोड़ देनी चाहिये। जो राज्य-कर्त्ता का अनुसरण नहीं करना चाहते, उन्हें उसके राज्य में रहने का क्या अधिकार?' नमुचि उइंडता पूर्वक बोला। विष्णुकुमार तनिक उग्रता से बोले, 'चातुर्मास में साधु जायें कहाँ? तीन कदम जितनी खड़े रहने की जगह तो दोगे या नहीं?' नमुचि योला, 'अच्छा, मैं तीन कदम भूमि प्रदान करता हूँ, परन्तु स्मरण रहे कि तीन-कदमों से बाहर किसी साधु को देखा तो मैं जीवित नहीं छोडूंगा उसे।' विष्णुकुमार ने कहा, 'स्वीकार है।' । 'तो नाप लो अपनी तीन पग भूमि।' नमुचि ने विष्णुकुमार को दवाते हुए कहा। विष्णुकुमार तुरन्त एक लाख योजन की देह बना कर और एक पाँव जंबूद्वीप के इस किनारे और दूसरा पाँव दूसरे किनारे पर रख कर बोले, 'नमुचि! बोल तीसरा पाँव कहाँ रखू? क्या तेरे सीने पर रखू?' देव, दानव सब विष्णुकुमार की लाख योजन देह देख कर काँप उठे । इन्द्र का सिंहासन हिल गया । देवलोक के नृत्यारंभ वन्द हो गये। महापद्म राजा अन्तःपुर में से भागा हुआ आया और दीनता पूर्वक बोला, 'महामुनि! आप अपना विराट रूप समेट लें यह अपराध नमुचि का नहीं परन्तु भगवन्! ET. LAIMIMMATH एक लाख योजन का वैकिय शरीर बनाकर नमुधि से विष्णुकुमार मुनि ने कहा‘एक पांव जंबूद्वीप के इस पार, नसरा उस पार, और अब तीसरा कहाँ पर रख?
SR No.008713
Book TitleJain Katha Sagar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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