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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी उसकी चोट ऐसी लगी कि वह बेहोश हो गया. ड्राइवर और फायरमैन ने मिल करके उसे ब्वायलर में डाल दिया. आप जानते हैं स्टीम इंजन का ब्वायलर कैसा होता है. जैसे तिनका जलता हो ऐसे ही उसका शरीर भस्मसात हो गया. पैसे का दर्शन करना भी कितना खतरनाक है. अनीति और अन्याय से भरा हुआ जीवन, क्या पाप नहीं करता. शरण में आये हुए व्यक्ति का नाश कर देना कितना भयावह लगता है? पर द्रव्य को प्राप्त करने की दूषित मनोवृत्ति कितनी ख़तरनाक है? परन्तु यह पाप छिपा नहीं रहता. दुर्गन्ध को आप कितना छिपाएंगे? आखिर वह कहीं न कहीं से प्रगट होगा. जैसे ही गाड़ी अमृतसर आई, लेडीज कम्पार्टमेंट से उसका बच्चा और उसकी पत्नी उतरे और इंजन की ओर आए. ड्राइवर को यह पता नहीं था कि पीछे भी कोई है. उसकी पत्नी ने सूटकेस देखते ही कहा कि मेरे पति कहां गये? ड्राइवर ने कहा कि मुझे कुछ नहीं मालूम. ड्राइवर के चेहरे से बोलने से मन में शंका हुई. उस स्त्री ने तुरंत पुलिस के पास जाकर निवेदन किया कि मेरे पति नहीं मिल रहे हैं. कहीं गायब हो गये हैं. शायद उन्हें मार दिया गया है और यह मेरा सारा सूटकेस इस ड्राइवर के अधिकार में है, यह मुझे दिलाया जाये. पुलिस बड़ी ईमानदार थी, अंग्रेज़ अफसर थे. पुलिस ने ड्राइवर और फायरमैन को गिरफ्तार किया और वह सूटकेस कब्जे में लिया. जब उनकी पूछताछ की गयी तब मालूम पड़ा कि लाश ब्वायलर के अन्दर डाली गई थी. ब्वायलर को बुझा करके अन्दर से हड्डियां बरामद की गयीं. मेरा तो आपसे इतना ही कहना था कि अनीति और अन्याय का विचार व्यक्ति को कहां से कहां पहुंचा देता है. दूसरे के धन को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति कैसे भयंकर पाप के रास्ते अपना लेता है. इसीलिए परमात्मा ने कहा कि पर द्रव्य अर्थात् यह पैसा ऐसी चीज है, जिसका दर्शन करना भी पाप है, जिसका स्पर्श मात्र भी पाप है और संग्रह करना तो सर्वनाश है. यह समझ करके इसे उपयोग में लेना कि यह ज़हर है, जहां तक पाकेट में है, वहां तक पाप. और जैसे ही यह परोपकार में गया, तुरन्त पुण्य का प्रकार बनता है. रूपांतर होता है. कभी संग्रह करने की मनोवृत्ति नहीं रखना, यह तो समर्पण करना है. प्रारब्ध से और पुण्य से यदि दो पैसा ज्यादा मिल जाये तो उसे परोपकार में देना, परन्तु उपार्जन में विवेक रखना कि न्याय से और नीति से ही मैं उपार्जन करूंगा. बड़ा सुन्दर चिंतन है. यदि आपकी भावना सुन्दर है और न्याय तथा प्रामाणिकता से उपार्जन करते हैं तो कोई ऐसा अशुभ कर्म है, जो रुकावट पैदा करता है. वह तोड़ देगा. भावना से अशुभ कर्म का नाश होता है, आपके द्रव्य के, पैसे के आगमन में जो अंतराय है, जो रुकावट है, उस रुकावट को भी निकाल देता है. लोग बहुत प्रयत्न करते हैं. गलत रास्ते अपनाते हैं. मैं कहता हूं कि जो प्रारब्ध में है, वह परमात्मा भी नहीं ले सकता. बिना प्रारब्ध के यदि प्रभु भी आएं तो वे भी कुछ नहीं दे सकते. साना 57 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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