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-गुरुवाणी
सामने ही कबीर मिल गये. संत कबीर ने पूछा कि भाई सुबह-सुबह आज मेरे आश्रम में कैसे आए?
उसने कहा कि महाराज, आशीर्वाद लेने आया था. आप तो थे नहीं, मां वहां पर थीं और उनका आशीर्वाद मुझे मिल गया. "क्या आशीर्वाद दिया?"
उन्होंने कहा कि दिन में तीन बार राम का नाम लेना और तुम्हारे सारे दुख दर्द चले जायेंगे.
सुनते ही कबीर का चेहरा उतर गया. कबीर कुछ बोले नहीं, उदास हो कर घर पर आए. पत्नी ने पूछा"आज क्या बात है आपका चेहरा उतरा हुआ है, आप इतने उदास क्यों हैं?"
"तुम्हारे कारण. मेरे घर में परमात्मा के प्रति इतना बड़ा अविश्वास और तुम अविश्वास का जहर ले करके साधना करती हो, तुम्हें कैसे पूर्णता मिलेगी?" ।
यह सुन करके पत्नी भी विचार में डूब गई. “मैं और परमात्मा के प्रति अविश्वास?"
"और नहीं तो क्या? तूने तो एक प्रयोग किया है, वह आगन्तुक व्यक्ति दुखी था, दर्द से घिरा हुआ था और उसको वैचारिक शांति तुझसे प्राप्त करनी थी, तुमको इतना भी विश्वास नहीं परमात्मा के नाम में, कैसी प्रचण्ड शक्ति है, एक बार राम का स्मरण कर लीजिए तो सारे दुख और दर्द चले जाएं. मगर तुमने तो उसको कह दिया कि दिन में तीन बार लेना, और उसके अन्दर अविश्वास पैदा कर दिया. तीन बार की जरूरत ही क्या है? यदि एक बार में नहीं होता, तब तीन बार में कैसे दुःख दर्द दूर होगा?"
डाक्टर के पास मरीज जाए और डाक्टर स्वयं शंका में हो, शंकाशील हो, और मरीज से कहे कि मैंने रोग का पता तो लगाया है. सुबह यह टेबलेट्स तो लेना. अगर फर्क न पड़े तो दोपहर को यह कैप्सूल ले लेना और अगर इस कैप्सूल से भी फायदा ना हो तो शाम को आना मैं तुम्हें एक इंजेक्शन लगा दूंगा.
इसका मतलब - इट इज एन एक्सपैरिमैंट. यह प्रयोग जो डॉक्टर आप पर कर रहा है इससे डाइग्नोसिज़ (रोग की जाँच) पूरा नहीं हुआ है. __कबीर अपनी पत्नी से बोले कि तुमने तो प्रयोग किया, सुबह राम का नाम लेना, दुख नहीं जाए तो दोपहर को फिर ले लेना, अगर उससे भी फायदा न हो तो शाम को आना, फिर नई दवा दे दूंगी. कितनी सचोट बात कह दी. हम अविश्वास ले करके मंदिर में जाते हैं, अविश्वास ले करके संतों के चरणों में जाते हैं, मन में हमेशा शंकाशील रहते हैं इसीलिए आपकी साधना कभी फलीभूत नहीं होती. दुर्गा के मन्दिर गये, लाभ नहीं मिला, फिर काली के मंदिर चले, नहीं मिला तो चलो कहीं वैष्णव देवी के मंदिर चलें, नहीं मिला,
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