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गरुवाणी
गृहस्थ-जीवन में नैतिकता, प्रेम और द्रव्य-अर्जन
अनन्त उपकारी, परम कृपालु, करुणामय, आचार्य भगवंत श्री हरिभद्र सूरि जी जगत् के जीवन के कल्याण के लिए, उनकी आत्माओं के सुन्दर मार्गदर्शन के लिए, इस 'धर्मबिन्दु' ग्रंथ की रचना की. धार्मिक दृष्टि से उसका प्रारम्भ करते हुए मंगलाचरण के बाद उन्होंने कहा और लिखा कि सर्वप्रथम व्यक्ति अपने जीवन को कहां से प्रारम्भ करता है, जीवन की प्रारंभिक भूमिका क्या है? एक बार यदि व्यक्ति एकांत में गंभीर यह विचार और चिंतन करे तो उस चिंतन के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन को उज्ज्वल बना सकता है. मैं जैसा करूंगा वैसा ही परिणाम मुझे सामने मिलेगा. व्यक्ति अपने भाग्य का स्वयं ही निर्माण करता है. प्रारब्ध का निर्माण, आपका वर्तमान पुरुषार्थ करता है. जैसा आपका कार्य होगा, जैसी आपकी मनोवृत्ति होगी, और जैसा आपका पुरुषार्थ होगा, उसी के अनुसार प्रारब्ध का निर्माण होगा. भाग्य का निर्माण भगवान नहीं, व्यक्ति स्वयं करता है. परन्तु हम अपनी कमजोरी को ढकने के लिए भगवान को बीच में लाते हैं. आपने दो पैसे कमा लिए तो आपको नशा आ गया. व्यक्ति बड़े अहम् से कहता है कि मैंने सब कुछ किया, मेरे पास कुछ भी नहीं था. वह बड़े गर्व से अभिमान का पोषण करता है और कदाचित् वह बहुत कुछ लेकर आया और कुछ बचा न हो, सब कुछ खो गया हो और आप उनके पास जायें और उससे यदि बात करें तो कहेगा कि भाई क्या करूं मसीबत में आ गया, सब कुछ खो दिया, क्या करें भगवान की यही मर्जी थी. कमाते समय भगवान याद नहीं आया, मगर खोते समय भगवान को दस बार जरूर याद करेगा. वह यह नहीं सोचता कि मेरी मूर्खता से गया, मेरे पास विवेक का अभाव था और मेरी अज्ञान दशा के अन्दर उपार्जन किया हुआ मेरा द्रव्य चला गया. यही तो व्यक्ति की आदत है.
आध्यात्मिक दृष्टि से परमात्मा ने कहा कि जरा आप अपने जीवन पर विचार कर लेना. यह जीवन आज नहीं तो कल नष्ट होने वाला है. जिस चीज का आप उपार्जन कर रहे हैं जिसके लिए आप सारा जीवन प्रयत्नशील है वह आपके पास स्थायी रूप से रहने वाला कदापि नहीं है. इस प्रकार आचार्यश्री हरिभद्र सूरि जी ने इस प्रथम सूत्र के द्वारा इसकी पूरी जानकारी दी है. आपका सारा वर्तमान प्रयत्न निष्फल होगा, आपमें आत्मा के लिए जो प्रवृत्ति है. अपने स्वयं के आत्मसंतोष के लिए जो कार्य किया, चित्त की समाधि को प्राप्त करने का जो आपने प्रयास किया, वही प्रयास, वही पुरुषार्थ परलोक तक आपके साथ जाएगा.
सभी सांसारिक वस्तुएँ नश्वर हैं. ये भविष्य में आपके साथ नहीं रहने वाली हैं, गृहस्थ जीवन का परिचय देते हुए उस महान पूर्वाचार्य ने लिखा:
बना
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