________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी3D धर्मफल विशेष देशना विधि स्वस्वभावनियतो ह्यसौ विनिवृत्तेच्छाप्रपञ्च इति // 56 // (537) जिसने इच्छा समूह का नाश कर दिया है ऐसा सिद्ध जीव अपने स्वभाव में . ही रहता है. अतोऽकामत्वात् तत्स्वभावत्वान्न लोकान्तक्षेत्राप्तिराप्तिः // 57 // (538) निष्काम होने से, निष्काम स्वभाव होने से लोकांत स्थित सिद्ध क्षेत्र में जाने पर भी उसके साथ संबंध नहीं है. औत्सुक्यवृद्धिर्हि लक्षणमस्याः, हानिश्चसमयान्तरे इति // 58 // (536) एक समय में उत्सुकता की वृद्धि और दूसरे समय नाश (अन्य वस्तु प्राप्ति का) लक्षण है. न चैतत् तस्य भगवतः, आकालं तथावस्थितेरिति // 56 // (540) भगवान को यह उत्सुकता नहीं है क्योंकि यावत् काल वे उसी स्थिति में रहते हैं. कर्मक्षयाविशेषादिति // 60 // (541) कर्मक्षय में विशेषता न होने से वे उसी स्थिति में रहते है. इति निरुपमसुखसिद्धिरिति // 61 // (542) इस प्रकार सिद्ध भगवान को निरुपम सुख है ऐसा सिद्ध हुआ. सध्यानवह्निना जीवो, दग्ध्वा कर्मेन्धनं भुवि / सद्ब्रह्मादिपदैर्गीत, सं याति परमं पदम् // 46 // शुक्ल ध्यानरूप अग्नि से कर्मरूपी इंधन को जला कर 'सत् ब्रह्म आदि पदों द्वारा जीव शास्त्र में वर्णित परम पद को पाता है. 675 For Private And Personal Use Only