________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %Dगुरुवाणी धर्मफल विशेष देशना विधि 1:0A तथा-आत्यान्तिकी व्याबाधानिवृतिरिति // 36 // (520) और दुःख की अत्यंत निवृत्ति होती है. सा निरूपमं सुखमिति // 40 // (521) वह दुःखनिवृत्ति अनुपम सुख है. सर्वत्राप्रवृत्तेरिति // 41 // (522) सब जगह प्रवृत्ति रहित होने से पूर्ण सुख होता है. समाप्तकार्यत्वादिति // 42 // (523) सब कार्यो की समाप्ति हो चुकी है. न चैतस्य क्वचिदौत्सुक्यमिति // 43 // (524) उनको किसी कार्य के करने में उत्सुकता नही रहती. दुःखं चैतत् स्वास्थ्यविनाशनेनेति // 44 // (525) स्वस्थता का नाश करने से उत्सुकता दुःख है. दुःखशत्तयुनेकतोऽस्वास्थ्यसिद्धेरिति // 45 // (526) दुःख के बीज रूप उत्सुकता से अस्वस्थता सिद्ध होती है. अहितप्रवृत्त्येति // 46 // (527) अहितकर प्रवृत्ति से अस्वस्थता जानी जाती है. स्वास्थ्यं तु निरुत्सुकया प्रवृत्तेरिति // 47 // (528) उत्सुकता रहित प्रवृत्ति ही स्वस्थता (शांति) है. 673 For Private And Personal Use Only