________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी धर्मफल विशेष देशना विधि अकर्मा चासाविति // 31 // (512) वे जीव कर्मरहित होते हैं. तद्वत एव तद्ग्रह इति // 32 // (513) कर्मवाले को ही पुनर्जन्म आदि होते हैं. तदनादित्वेन तथाभावसिद्धेरिति // 33 // (514) कर्म के अनादिपन से उपरोक्त भाव (जन्म ग्रहण आदि) की सिद्धि होती है. सर्वविप्रमुक्तस्य तु तथास्व भावत्वान्निष्ठितार्थत्वान्न तद्ग्रहणे निमित्तमिति // 34 // (515) सर्वथा कर्ममुक्त जीव स्वभावतः ही कृतकृत्य होने से पुनः जन्म नहीं लेते क्योंकि पुनः जन्म लेने का कोई निमित्त ही नहीं होता. नाजन्मनो जरेति // 35 // (516) जिसे जन्म नहीं उसे जरा नहीं. एवं च-न मरणभयशक्तिरिति // 36 // (517) और मृत्यु का भय भी नहीं रहता. तथा-न चान्य उपद्रव इति // 37 // (518) और सिद्ध जीव को अन्य उपद्रव भी नहीं होता. विशुद्धस्वरूपलाभ इति // 38 // (516) अति शुद्ध आत्मस्वरूप प्राप्त होता है. 672 For Private And Personal Use Only