________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3 -गुरुवाणी धर्मफल विशेष देशना विधि ततः परमापायहानिरिति // 23 // (504) तब उत्कृष्ट, अनर्थ की हानि होती है. सानुबन्धसुखभाव उत्तरोत्तरः प्रकारमप्रभूतसत्त्वो पकाराय अवन्ध्यकारणं निवृत्तेरिति // 24 // (505) उत्तरोत्तर विशेष अविच्छिन्न सुखभाव उन प्रणियों के उपकार के लिये होता है और उससे वह मोक्ष का अवन्ध्य (सफल) कारण है. इति परम्परार्थकारणमिति // 25 // (506) अतः तीर्थंकरपद उत्कृष्ट परोपकार करने वाला है. भवोपग्राहिकर्मविगम इति // 26 // (507) भवोपग्राही कर्म का नाश होता है. ततः निर्वाणगमनमिति // 27 // (508) तब निर्वाण प्राप्ति होती है. तत्र च पुनर्जन्माद्यभाव इति // 28 // (506) मोक्ष प्राप्ति पर पुनर्जन्म का अभाव होता है. बीजाभावतोऽयमिति // 26 // (510) वह बीज के अभाव से होता है. कर्मविपाकस्तदिति // 30 // (511) कर्मविपाक ही बीज है. 671 For Private And Personal Use Only