________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Dगुरुवाणी FAS धर्मफल विशेष देशना विधि रागद्वेषमोहादिदोषाः, तथा तथाऽऽत्मदूषणादिति || (486) उस प्रकार से आत्मा को दूषित करने से राग, द्वेष व मोह तीनों दोष हैं. अविषयेऽभिष्वङ्गकरणाद् राग इति // 6 // (460) अयोग्य विषयों में आसक्ति ही राग है. तत्रैवाग्निज्वालाकल्पामात्सर्यापादनाद द्वेष इति // 10 // (461) उसी नाशवान पदार्थ पर आसक्ति के कारण अग्निज्वाला समान मत्सर करना द्वेष है. हेयेतरभावाधिगमप्रतिबन्धविधानान्मोह इति // 11 // (462) हेय व उपादेय भाव के ज्ञान को रेकनेवाला मोह नामक दोष है. सत्स्वेतेषु न यथावस्थितं सुखं, स्वधातुवैषम्यादिति // 12 // (463) इस त्रिदोष के होने से मूल प्रकृति की विषमता से यथार्थ सुख नहीं मिल सकता. क्षीणेषु न दुखं, निमित्ताभावादिति // 13 // (464) त्रिदोष क्षय से दुःख नहीं होता, क्योंकि दुःख के निमित्त का अभाव होता है. आत्यन्तिकभावरोगविगमात् परमेश्वरताऽऽप्तेस्तत् तथास्वभावत्वात् परमसुखभावइतीति // 14 // (465) भावरोग के पूर्ण नाश से परमेश्ववर पद प्राप्त होता है और उससे स्वभावतः परम सुख मिलता है. - 669 For Private And Personal Use Only