________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %3-गुरुवाणी धर्मफल देशना विधि अतिविशिष्टालादादिमदिति // 21 // (464) और वह जन्म अतिशय आह्लाद से युक्त होता है. ततः तच्च्युतावपि विशिष्टदेश इत्यदि समानपूर्वेणेति // 22 // (465) वहां से च्यवन होने पर अच्छे देश आदि में जन्म पहले की तरह होता है. विशिष्टतरं तु सर्वमिति // 23 // (466) पूर्वोक्त से इस जन्म में सब विशिष्ट प्रकार का होता है. क्लिष्टकर्मविगमादिति // 24 // (467) अशुभ कर्म का नाश होने से सद्गति की प्राप्ति होती है. शुभतरोदयादिति // 25 // (468) अधिक शुभ कर्म के उदय से अशुभ कर्म स्वयमेव नष्ट हो जाते है. जीववीर्योल्लासादिति // 26 // (466) जीव के वीर्य की अधिकता से शुभ कर्मोदय होता है. परिणतिवृद्धेरिति // 27 // (470) जीव की परिणति की वृद्धि से शुभ विचारों की वृद्धि होती है. तत् तथास्वभावत्वादिति // 28 // (471) जीव को उस प्रकार का स्वभाव होने से जीव की शुभ परिणति होती है. 663 For Private And Personal Use Only