________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी धर्मफल देशना विधि तथा-काले धर्मप्रतिपत्तिरिति // 12 // (455) और योग्य समय पर धर्म को अंगीकार करना चाहिये. तत्र च-गुरुसहायसंपदिति // 13 // (456) उसमें भी गुरु की सहायता रूप संपत्ति मिलती है. ततश्च साधुसंयमानुष्ठानमिति // 14 // (457) उससे अच्छी तरह संयम का पालन होता है. ततोऽपि परिशुद्धाराधनेति // 15 // (458) उसके बाद परिशुद्ध आराधना करता है // 15 // तत्र च-विधिवच्छरीरत्याग इति // 16 // (456) तब विधिवत् शरीर का त्याग करता है. ततो विशिष्टतरं देवस्थानमिति // 17 // (460) फिर अधिक उत्तम देवस्थान की प्राप्ति होती है. ततः सर्वमेव शुभतरं तत्रेति // 18 // (461) और वहां अतिशय शुभ सब वस्तुएं मिलती हैं. परं गतिशरीरादिहीनमिति // 16 // (462) परंतु गति और शरीर आदि पूर्व की अपेक्षा हीन होती है. तथा-रहितमौत्सुक्यदुःखेनेति // 20 // (463) ' और उत्सुकता दुःख से रहित होता है. 662 For Private And Personal Use Only