________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी धर्मफल देशना विधि CIPE - तथा-भावैश्वर्यवृद्धिरिति // 4 // (447) और भाव ऐश्वर्य की वृद्धि होना भी है. तथा-जनप्रियत्वमिति // 5 // (448) और लोकप्रिय होना है. परम्परफलं तु सुगतिजन्मोत्तमस्थान-परम्परानिर्वाणावाप्तिरिति // 6 // (446) अच्छी गति में जन्म, उत्तम स्थान की प्राप्ति तथा परंपरा से मोक्ष की प्राप्ति परंपरा फल है. सुगतिर्विशिष्टदेवस्थानमिति // 7 // (450) उच्च देवलोक में जन्म होने को सुगति कहा है. तेत्रोत्तमा रूपसंपत्, सतस्थितिप्रभाव सुखद्युति-लेश्यायोगः, विशुद्धेन्द्रियावधित्वम्, प्रकृष्टानि भोगसाधनानि, दिव्यो विमाननिवहः, मनो-हराण्युद्यानानि, रम्या जलाशयाः, कान्ता अप्सरसः, अतिनिपुणाः किङ्कराः, प्रगल्भो नाटयविधिः, चतुरोदारा ___ भोगाः, सदा चित्ताह्लादः, ' अनेक-सुखहेतुत्वम्, कुशलानुबन्धः,महाकल्याणपूजाकरणम्, तीर्थङ्करसेवा, सद्धर्मश्रुतौ रतिः, सदा सुखित्व-मिति // 8 // (451) उस देवलोक में उत्तम रूप संपत्ति, सुंदर स्थिति, प्रभाव, सुख, कांति व लेश्या की प्राप्ति, निर्मल इन्द्रिय और अवधिज्ञान, उच्च भोग के साधन, दिव्य विमानों का समूह, मनोहर उद्यान, रम्य जलाशय, सुदर अप्सराएं, अतिचतर सेवक अतिरमणीय नाटकविधि, चतर उदार भोग, सदा चित्त में आनन्द, अनेकों के सुखों का कारण, सुंदर परिणामवाले कार्यो की परंपरा, महाकल्याणकों में पूजा करना, तीर्थंकर की सेवा, सद्धर्म सुनने में हर्ष और निरंतर सुख-इन सबकी प्राप्ति होना धर्म के परंपराफल हैं. 660 For Private And Personal Use Only